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________________ | 10 जनवरी 2011 | जिनवाणी 353 आचार्यप्रवर- अकाल मरण रक्त क्षय, हिमपात, वज्रपात, अग्नि, उल्कापात, जल प्रवाह, गिरि वृक्षादि के गिरने से भी होता है। युवती- उन्हें तो हृदयाघात हुआ था। आचार्यप्रवर- मृत्यु आने के कई बहाने हैं। समझदारी इसी में है कि जन्म और मृत्यु के बीच के समय का सदुपयोग हो। मानव-जीवन परम दुर्लभ है क्योंकि मानव भव में ही राग-द्वेष-मोह का क्षय किया जाना सम्भव है। अतः मृत्यु का शोक न कर आप लोग इस सच्चाई को जानकर उनके प्रति उठने वाले मोह को कम करने का प्रयत्न करें। युवक-युवती-गृहस्थी के जीवन में आने वाले दुःख उसे तोड़ते हैं तो साथ में अध्यात्म से जोड़ते भी हैं। हम तो धर्मानुरागी हैं- धर्म की राह के राहगीर और आप पथप्रदर्शक ही नहीं, पथ अन्वेषक भी हैं। गुरुदेव आपने दिया हमें ज्ञान गुरुवर महान् गुणी विद्वान साधक को उन्नति पथ दिखलाने वाले तलहटी से शिखर पर पहुंचाने वाले। (दो साध्वियों का प्रवेश होता है) साध्वी-एक- गुरु का जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ___ साधना के क्षेत्र में गुरु शिखर समान होता है। साध्वी-दो- गुरुवर प्रेरणा देते हैं, गुरुवर घड़ते हैं। गुरुवर जैसा घड़ने वाला कोई दूसरा नहीं होता है। गुरु के प्रति श्रद्धा रखकर, जीवन में आचरण करने वाला सुख का अधिकारी बनता है। साध्वी-एक- गुरु जड़ को नहीं, चेतन को घड़ता है। जाग्रत कर अंतश्चेतना, अवगुणों को हटाता है। मन की चंचलता को, मिटाकर दिखाता है। साध्वी-दो- गुरुदेव कारीगर है, पथ-प्रदर्शक है, सर्जक है, निर्माता है। गुरुदेव ने ही मुझे श्रमशील बनाया। समभाव का साधक बनना सिखाया। मैंने सीखा-कषायों को शान्त करना। मेरा मन सबके प्रति हित कामना से आप्लावित है। मेरा जीवन ज्ञानामृत की कृपा दृष्टि पाने हेतुरत है। युवक-युवती-हम सब गुरुदेव के अनुयायी हैं। सर्वत्र गुरुदेव की महिमा छाई है। गुरुदेव से मिलता पावन दिशा बोध मन-वचन-काया को साधना से जोड़ने का विनम्र अनुरोध। समवेत स्वर- हम सभी धर्मानुरागी प्रतिज्ञा करते हैं कि जीवन में धीरता, गम्भीरता, सहनशीलता लायेंगे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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