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________________ 10 जनवरी 2011 जिनवाणी - 342 , श्रमण-जीवन से शिक्षाएँ संकलन : श्री नवरतन डागा श्रमण-जीवन में जो कार्य अनाचरणीय हैं, उनमें से कुछ कार्यों का श्रावक भी त्याग कर सकता है। श्रमण-जीवन श्रावक के लिए आदर्श होता है। वह श्रमणों के जीवन से जितना व्रत-नियम में आगे बढ़ेगा, उतना ही जीवन को सार्थक करेगा । इस अमूल्य मानव जीवन की महत्ता को समझकर इसका सदुपयोग करने में ही बुद्धिमत्ता है, यह संदेश प्रस्तुत आलेख से प्राप्त होता है। -सम्पादक श्रमण जीवन उत्कृष्ट जीवन है। आचार्य हस्ती के शब्दों में- “श्रमण के दो अर्थ मुख्य हैं। एक तो यह कि तप और संयम में जो अपनी पूरी शक्ति लगा रहा है, तपस्वी है वह श्रमण है। दूसरा अर्थ है 'समण' अर्थात् त्रस, स्थावर सब प्रकार के प्राणियों की जिसके अन्तःकरण में हित-कामना है, वह श्रमण संसार की मोह-माया को त्याग कर, अपने इन्द्रियों को वश में करने का प्रयास कर साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ने वाले श्रमण श्रेष्ठों का जीवन सदैव प्रेरणादायी रहा है। प्रभु महावीर ने श्रमण-जीवन को सुदृढ़ एवं साधनाशील बनाने के लिए आचार-संहिता बताई है। उन्होंने श्रमण के अशन, वस्त्र, पात्र, निवास स्थान के संबंध में बताया है कि श्रमण के निमित्त यदि कोई वस्तु बनाई गई हो या पुराने पदार्थ में नवीन संस्कार किया गया हो तो वह साधु के लिए अग्राह्य है। यदि अनुद्दिष्ट वस्तु मिल जाए और उनके लिए उपयोगी हो तो वे उसे ग्रहण कर सकते हैं। जैन श्रमण बौद्ध और वैदिक परम्परा के भिक्षुओं की तरह किसी के घर पर भोजन का निमन्त्रण भी ग्रहण नहीं करते हैं। . हमारे पूजनीय गुरुजनों का जीवन कैसा होता है? उनकी साधना कितनी कठोर होती है? यह सब जानते हुए, समझते हुए क्या हम उनके जीवन से कुछ शिक्षाएं ग्रहण कर सकते हैं? उनकी प्रत्येक क्रिया हमारे लिए भी कुछ संदेश देती है। जहाँ एक ओर साधु-साध्वी पंच महाव्रतधारी होते हैं तो हमारे लिए भी 12 व्रतों को धारण करने की प्रेरणा की जाती है। एक साथ अगर 12 व्रत स्वीकार न कर सकें तो एक-एक कर भी हम व्रतों को स्वीकार कर सकते हैं। पूर्ण व्रतों को स्वीकार न कर सकें, तो भी व्रतों में मर्यादा रखकर उसे स्वीकार किया जा सकता है। साधु-साध्वियों के व्रतों में कोई छूट नहीं होती, परन्तु श्रावक-श्राविकाएं छूट के साथ व्रतप्रत्याख्यान ग्रहण कर सकते हैं। साधु-साध्वियों के व्रत मोती के समान होते हैं जो अमूल्य होते हैं। मोती के टूटने पर उसकी कोई कीमत नहीं रहती, उसी प्रकार श्रमण-जीवन में व्रत के टूटने पर श्रमण-जीवन स्थिर नहीं रह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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