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________________ 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 290 श्रमणवर्ग में अनुशासनहीनता पर नियन्त्रण श्रमणसंघीय महामंत्री श्री सौभाग्यमुनि जी 'कुमुद' श्रमण-श्रमणी वर्ग में भी कई बार अनुशासनहीनता दृग्गोचर होती है। उनको अनुशासन में रखने हेतु आवस्सहि' आदि दशविध समाचारी का विधान है। ये अनुशासन के मौलिक सूत्र है। साधु-साध्वी के धर्मानुशासन एवं जिनाज्ञा में न रहने के अनेक कारण हो सकते हैं, उनमें अयोग्यदीक्षा, ज्ञानाभाव आदि चार का उल्लेख विद्वान् सन्त ने किया है तथा अनुशासन में रहने के प्रशिक्षण की आवश्यकता बतायी है। -सम्पादक अनुशासन के मौलिक सूत्र श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने चार तीर्थ की स्थापना की, उसमें सर्वप्रथम तीर्थ स्वरूप श्रमण वर्ग को लिया, तदनन्तर श्रमणी और श्रावक-श्राविका रूप तीर्थों की रचना की। श्रमण-श्रमणी धर्मशासन और गुरु के अनुशासन में रहे, इसके लिए अनेक आवश्यक निर्देश किये गये जो शास्त्रों में संकलित हैं। जो साधक आत्म-कल्याण की सर्वोत्कृष्ट साधना में संलग्न होना चाहता है उसे ही श्रमणधर्म में आना चाहिए। परमार्थ साधना ही श्रमण का लक्ष्य होता है। परमार्थ आराधना के दुरूह मार्ग पर अग्रसर होते समय साधक के सामने गुरु का आदर्श उपस्थित रहता है। गुरु के दिशा-निर्देशन में ही श्रमण की पारमार्थिक आराधना सम्पन्न होती है। गुरु के दिशा-निर्देशन की सार्थकता शिष्य द्वारा आचरित अनुशासन में ही निहित है। गुरु का अनुशासन यथार्थ में तो पारमार्थिक आत्म-साधना के लिए ही होता है, किन्तु व्यवहार जिसमें जीवन की अधिकांश गतिविधियाँ संचालित होती हैं उसमें भी गुरु का अनुशासन नितान्त आवश्यक होता है, क्योंकि निश्चय के निर्माण में व्यवहार भी सहायक सिद्ध होता है यह अनुभव-सिद्ध यथार्थ है। 'आणाए धम्मो' गुरु और तीर्थंकर परमात्मा की आज्ञा के अनुसरण में ही धर्म का तत्त्व निहित है यह अनुशासनसूत्र जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के लिए उपयोगी है। 'गच्छतः स्खलनम्' चलता हुआ कभी ठोकर भी खा जाता है, कभी मार्गच्युत भी हो सकता है। ऐसी स्थिति में गुरु के आवश्यक निर्देश ही साधक के लिए उपयोगी सिद्ध होते हैं। अपनी त्रुटियों को समझकर गुरु-आज्ञा के अनुसार शिष्य अपना शुद्धीकरण करता है और पुनः सन्मार्ग पर समारूढ़ हो जाता है। दशविध समाचारी 'आणाए धम्मो' यह एक समुच्चय सूत्र है। यद्यपि साधक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यह सूत्र उपयोगी सिद्ध होता है फिर भी श्रमण-जीवन के कुछ ऐसे अंग हैं जिनके विषय में शास्त्रों में कुछ अलग तरह के निर्देश भी उपलब्ध हैं, उनमें दश समाचारी का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है। शिष्य-शिष्याओं द्वारा जहाँ-जहाँ अनुशासन में क्षीणता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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