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10 जनवरी 2011
जिनवाणी
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है। सौन्दर्य के लिए वमन, वस्तिकर्म, विरेचन अनाचार हैं, रुग्णावस्था में यह अनाचार नहीं है। इस प्रकार
संयम में बाधा पहुँचाने वाले अनाचार से विरत रहकर काय - है।
-गुप्ति का सम्यक् प्रकार से पालन किया जाता
सन्दर्भ:
1. दशवैकालिक सूत्र, 9.4.3
2. दसवेआलियं, जैन विश्वभारती, लाडनूं, 1973 2.4, पृ. 28
3.
धम्मपद 1.1
4. दशवैकालिक सूत्र, द्वितीय चूलिका, गाथा 2, 3
5.
जिनदास चूर्णि में 'आसव- प्रतिस्रोत' का अर्थ इन्द्रिय-जय किया गया है- द्रष्टव्य, दसवेआलियं, पृ. 5.25
6. मनुस्मृति, द्वितीय अध्याय, श्लोक 3
7.
द्रष्टव्य- दसवे आलियं, पृ. 23
8.
दशवैकालिक सूत्र, 2.1
9.
दव्व कामा य भाव कामा य ।। - दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा 161
10. सदद् रस रूव गंधा फासा, उदयं करा य जे दव्वा
दुविहा य भावकामा, इच्छा कामा मयण कामा।। - दशवैकालिक निर्युक्ति, 162
11. दसवेआलियं, जैन विश्व भारती, लाडनूं, 1973, पृ. 23
12. दशवैकालिक सूत्र, 2.5
13. तहप्पगारं भासं सावज्जं सकिरियं कक्कसं कड्डयं निठुरं फरुसं अण्हयकरिं छेयणकरिं परित्तावणकरिं उद्दवणकरिं भूओवघाइयं अभिकंखं नो भासेज्जा । - आचार चूला 4.10, द्रष्टव्य- दसवे आलियं, पृ. 348
14. दशवैकालिक सूत्र 7.12
15. दशवैकालिक सूत्र, 7.6,7
16. दशवैकालिक सूत्र 7.13-20
17. दशवैकालिक दीपिका, पृ. 7 - द्रष्टव्य- दसवेआलियं, पृ. 39
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- 12 /7A, 'समता कुंज' जालम विलास स्कीम, पावटा 'बी' रोड़, जोधपुर (राज.)
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