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________________ 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 279 है। सौन्दर्य के लिए वमन, वस्तिकर्म, विरेचन अनाचार हैं, रुग्णावस्था में यह अनाचार नहीं है। इस प्रकार संयम में बाधा पहुँचाने वाले अनाचार से विरत रहकर काय - है। -गुप्ति का सम्यक् प्रकार से पालन किया जाता सन्दर्भ: 1. दशवैकालिक सूत्र, 9.4.3 2. दसवेआलियं, जैन विश्वभारती, लाडनूं, 1973 2.4, पृ. 28 3. धम्मपद 1.1 4. दशवैकालिक सूत्र, द्वितीय चूलिका, गाथा 2, 3 5. जिनदास चूर्णि में 'आसव- प्रतिस्रोत' का अर्थ इन्द्रिय-जय किया गया है- द्रष्टव्य, दसवेआलियं, पृ. 5.25 6. मनुस्मृति, द्वितीय अध्याय, श्लोक 3 7. द्रष्टव्य- दसवे आलियं, पृ. 23 8. दशवैकालिक सूत्र, 2.1 9. दव्व कामा य भाव कामा य ।। - दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा 161 10. सदद् रस रूव गंधा फासा, उदयं करा य जे दव्वा दुविहा य भावकामा, इच्छा कामा मयण कामा।। - दशवैकालिक निर्युक्ति, 162 11. दसवेआलियं, जैन विश्व भारती, लाडनूं, 1973, पृ. 23 12. दशवैकालिक सूत्र, 2.5 13. तहप्पगारं भासं सावज्जं सकिरियं कक्कसं कड्डयं निठुरं फरुसं अण्हयकरिं छेयणकरिं परित्तावणकरिं उद्दवणकरिं भूओवघाइयं अभिकंखं नो भासेज्जा । - आचार चूला 4.10, द्रष्टव्य- दसवे आलियं, पृ. 348 14. दशवैकालिक सूत्र 7.12 15. दशवैकालिक सूत्र, 7.6,7 16. दशवैकालिक सूत्र 7.13-20 17. दशवैकालिक दीपिका, पृ. 7 - द्रष्टव्य- दसवेआलियं, पृ. 39 Jain Educationa International - 12 /7A, 'समता कुंज' जालम विलास स्कीम, पावटा 'बी' रोड़, जोधपुर (राज.) For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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