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10 जनवरी 2017: जिनवाणी 25
प्रवचन
सच्चा गुरु व्यक्ति को कल्याण के मार्ग से जोड़ता है
उपाध्यायप्रवर श्री मानचन्द्र जी म.सा.
जो गुरु व्यक्ति को धर्म से नहीं जोड़कर अपने से जोड़ता है वह ममत्व को बढ़ाता है एवं शिष्य को सन्मार्ग पर योजित नहीं कर पाता । सच्चा गुरु व्यक्ति को धर्म-मार्ग अथवा कल्याण-मार्ग से जोड़कर प्रमोद का अनुभव करता है। उपाध्यायप्रवर ने ऐसे ही सद्गुरु का विवेचन अपने प्रवचन में किया है। -सम्पादक
जैन धर्म में देव, गुरु और धर्म- ये तीन तत्त्व विशेष महत्त्व के हैं। देव धर्म के संस्थापक होते हैं, 'गुरु' प्रचारक । सिद्धान्त को 'धर्म' कहा गया है। गुरु का स्थान देव और धर्म के बीच का है। बीच में रहने वाला दोनों तरफ दृष्टि रखता है, देहली-दीपक न्याय की तरह । गुरुओं का काम जोड़ने का है, वे जोड़ते चले जाते हैं। गुरु हर समय व्यक्तियों को धर्म से जोड़ने का काम करते हैं। आचार्य भगवन्त (पूज्य श्री हस्तीमल जी म.सा.) के जीवन को लेकर आपके सामने बात रखी जा रही है।
गुरु कैसा होना चाहिए? गुरु अपने से नहीं जोड़कर, सम्प्रदाय से नहीं जोड़कर व्यक्ति-व्यक्ति को धर्म से जोड़ता है। जो अपने से जोड़ता है वह गुरु ममत्व को बढ़ाता है। सम्प्रदाय से जोड़ने वाला परिग्रह बढ़ाने का काम करता है और जो धर्म से जोड़ता है वह अपना तो कल्याण करता ही है, जिसको जोड़ता है उसका भी कल्याण करता है।
आचार्य भगवन्त पूज्य गुरुदेव श्री हस्तीमल जी महाराज जो भी उनके सान्निध्य में आया, उसे जोड़ते गये। बच्चे से वृद्ध तक सबको उस महापुरुष ने धर्म से जोड़ा। बच्चों के लिए धार्मिक पाठशालाओं की आवश्यकता बताई तो युवकों के लिए सामायिक-स्वाध्याय का अवलम्बन दिया। वृद्धों के लिए साधना की बात पर जोर दिया। जैसा व्यक्ति देखा उसकी योग्यता और प्रतिभा के अनुसार वे सबको जोड़ते गये।
गुरुदेव फरमाते थे- राग तीन तरह के होते हैं। एक होता है- व्यक्ति-राग, दूसरा सम्प्रदाय-राग और तीसरा होता है- धर्म-राग । व्यक्ति-राग, व्यक्ति रहता है तब तक रहता है। सम्प्रदाय-राग जब तक सम्प्रदाय है तब तक रहेगा। धर्म-राग हमेशा बना रहता है। जुड़ाव में भी कई व्यक्ति राग से जुड़े होते हैं। गुरु के प्रति राग बुरा नहीं है, किन्तु व्यक्तिगत राग व्यक्ति के जाने पर समाप्त हो जाता है। दिवाकर श्री चौथमल जी महाराज ने कई अजैनों को जैन बनाया। लोगों को उनके साथ व्यक्तिगत राग
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