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________________ | 26 | जिनवाणी 10 जनवरी 2011 || ही रहा, धर्मराग नहीं। उनके चले जाने पर राग समाप्त हो गया। दिवाकर जी महाराज ने कई मोचियों को, मालियों को, तैलियों को, सुनारों को और यहां तक कि मुसलमानों को भी जैन बनाया। राग के कारण लोग उनके भक्त बन गये। जब तक दिवाकर जी रहे, वे जुड़े रहे। व्यक्ति शाश्वत नहीं रहता। धर्म शाश्वत रहता है। सम्प्रदाय भी स्थायी रहने वाली नहीं है। भूतकाल में अनेक सम्पद्रायें हुई, कईं परम्पराएँ बनीं, परन्तु अच्छी-अच्छी सम्प्रदायें समाप्त हो जाने पर उनका पता तक नहीं रहा। . आचार्य भगवन्त फरमाते थे- धर्म शाश्वत है और रहेगा। त्रिकाल में धर्म रहने वाला है। भगवन्त ने व्यक्ति-व्यक्ति को सामायिक-स्वाध्याय से, व्रत-नियमों से और साधना-आराधना से जोड़ा। किसी में विनय का गुण देखा तो उसे विनय धर्म में लगाया। उस महापुरुष की पैनी दृष्टि थी, व्यक्ति-व्यक्ति की परख थी। वे व्यक्ति की प्रतिभा समझकर उसे जोड़ते और उसकी प्रतिभा को निखारते । गुरुदेव छोटे से बड़े सबको धर्म से जोड़ते गये। जिसे भी गुरुदेव धर्म में जोड़ते उसे पता तक नहीं लगता था। अंगुली पकड़ते-पकड़ते ऊपर तक पहुँचा देते। पहले-पहल पाँच नमस्कार मंत्र सिखाने से लेकर गुरुदेव ने पंच महाव्रती तक बना दिये । जुड़ने वाला व्यक्ति भी सहर्ष नियमों में आगे बढ़ता जाता। गुरुदेव जानते थे सराग संयम से व्यक्ति आगे बढ़ सकता है। अधिकांश गुरु अपने भक्तों को खुद से जोड़ते है। एक मौलवी के पास एक शिष्य पहुँचा। कहने लगा- मौलवी साहब! मुझे हुक्म दीजिये मैं लोगों को खुदा से जोडूं। मौलवी साहब कहने लगे- खुदा से जरूर जोड़ना, खुद से मत जोड़ना। आचार्य भगवन्त का हृदय बड़ा विशाल था। उनकी भावना रहती श्रमण संघ उन्नति करे । श्रमण संघ से निकलने के बाद भी साधक उनका परामर्श लेते । गुरुदेव के हृदय में विशालता थी, इसीलिये वे जहाँ भी जाते वहाँ धर्म ध्यान का स्वतः ठाट लग जाता। गुरुदेव में व्यक्तिगत-सम्प्रदायराग नहीं, धर्म का राग था। जैन हो या जैनेतर, वे सबको धर्मसाधना में निरन्तर आगे बढ़ाते रहे। धर्मराग शाश्वत रहता है। भारत में अन्यान्य धर्म भी रहे और हैं भी। किन्तु कुछ धर्म ऐसे भी हैं जो व्यक्ति राग से जोड़ते हैं। आचार्य भगवन्त ने साधक को साधक तक ही नहीं रखा, साधना के द्वारा सिद्धि का रास्ता बताया। __ जैन धर्म ऐसा ही है। एक पाश्चात्त्य व्यक्ति ने कहा- महावीर एक अद्भुत व्यक्ति था । वह साधक को सत्य से जोड़कर सिद्धि तक ले जाता। सच्चा गुरु वही है जो कल्याणमार्ग से जोड़े। गुरु की सोच भक्त को भक्त ही नहीं, भगवान बनाने की होती है। जो गुरु भक्त को भक्त ही बनाए रखता है, वह गुरु कैसा? पारस लोहे से सोना बनाता है, पारस नहीं, किन्तु गुरु भक्त को भगवान बनाता है। जोधपुर में वि.सं. 2010 में संयुक्त चातुर्मास था, जिसमें उपाचार्य गणेशीलाल जी महाराज, प्रधानमंत्री आनन्दऋषि जी महाराज, सहमंत्री हस्तीमल जी महाराज, कवि अमरचन्द जी महाराज, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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