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________________ 24 जिनवाणी सकता है, शूली का सिंहासन हो सकता है। इसीलिये तो आप बोलते हैं शील रतन मोटो रतन, सब रतनों की खान, तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ॥ ब्रह्मचर्य की ताकत हो तो शेर का कान पकड़कर उसकी सवारी की जा सकती है। कई-कई माताओं ने शील को खण्डित नहीं किया । वह चाहे सच्चियाय माता हो, लोढ़ा कुल की भंवाल माता हो अथवा कोई अन्य माता हो, शील के कारण माता को कुल की रक्षा करने वाली कहा गया है । 10 जनवरी 2011 हमारे धर्म का मुख्य आधार शील है। हमारी हर क्रिया का सहयोगी शील है। शील बुद्धि बढ़ाने वाला है, शील शक्ति का संचार करने वाला है। शील धरती के धर्म को बदलने वाला है। सती चाहे वह सीता हो, द्रौपदी हो, चन्दनबाला हो, उन्होंने शील का पालन किया। शील का वृत्तान्त सुनकर ही न रहें इसका पालन करें । आचार्य श्री हस्ती जन्म-शताब्दी वर्ष के प्रसंग पर आप अध्यात्म-चेतना की साधना में आगे बढ़ने का प्रयास करें । स्वयं करें, जिनको साधना की जानकारी नहीं है उन्हें समझाकर साधना मार्ग में आगे बढ़ाये । आज कई ऐसे भी हैं जो ब्रह्मचर्य का पालन तो करते हैं, किन्तु संकोच से प्रतिज्ञाबद्ध नहीं होना चाहते। आपने आचार्य भगवन्त का जीवन चरित्र सुना है। इस (रत्नसंघ) पट्ट- परम्परा में आचार्य श्री गुमानचन्द्र जी महाराज़ हों, आचार्य श्री हमीरमल जी, आचार्य श्री कजोड़ीमल जी, आचार्य श्री विनयचन्द जी, आचार्य श्री शोभाचन्द्र जी और पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज सभी बाल ब्रह्मचारी हुए। इस परम्परा के सभी आचार्य दस से पन्द्रह साल की उम्र में दीक्षित हुए। ऐसे बाल ब्रह्मचारी आचार्य भगवन्त जहाँ भी गये वहाँ शांति की स्थापना की । उन महापुरुषों ने जो कह दिया वह हो गया । पूज्य आचार्य भगवन्त श्री शोभाचन्द्र जी महाराज कितने निर्लेप साधक संत थे । वे कभी बन्द कमरे में नहीं, सबके सामने बाहर पाट पर विराजते । एकान्त उन्हें चाहिये जो गुपचुप बात करना चाहते हैं। साधना करने वाले साधक तो जहाँ भी विराजते हैं वह एकान्त हो जाता है। आचार्य भगवन्त पूज्य श्री शोभाचन्द्र जी महाराज का जीवन तो खुली डायरी के समान था । कोई जब चाहे तब आ जाये उन्हें सदा अप्रमत्त रूप में देखा । उनकी सेवा में न्यायाधिपति - वकील-अधिकारी सभी निःसंकोच आते, सेवा का लाभ लेते । जोधपुर में शायद ही किसी कौम का व्यक्ति हो जो उनकी सन्निधि में नहीं आया। एक संदेश कहकर अपनी बात समाप्त करूँ- अगर सुख पाना चाहते हो तो वीतराग वाणी पर और गुरु वचनों पर श्रद्धा करके साधना-मार्ग में आगे बढ़ें तो अव्याबाध सुख-शांति प्राप्त कर सकेंगे । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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