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जिनवाणी
| 10 जनवरी 2011 || श्रावकों की तरह का जीवन यापन करना चाहिये। श्रावक भी श्रमण का उपासक है,अतः उसके जीवन में श्रमणत्व के गुण झलकने चाहिये। बारहव्रत, चौदह नियम एवं तीन मनोरथ की आराधना तो करनी ही चाहिये, लेकिन इसके अलावा भी गृहस्थ में रहते हुए अपनी शक्ति के अनुसार श्रमण के क्षमा आदि दस गुण, पांच समिति, तीन गुप्ति, दस समाचारी आदि की भी आंशिक रूप से आराधना करते रहना चाहिये। यह हमको ध्यान रखना चाहिये कि हमारा कल्याण भी श्रेष्ठ आराधना करने से ही है तथा अन्यों पर भी हमारे आचरण का गहरा प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि प्रभाव जीभ का नहीं जीवन का पड़ता है। ___मैं इस लेख को लिखते हुए संकोच का अनुभव कर रहा हूँ, छोटे मुँह बड़ी बात वाली कहावत चरितार्थ करने जैसा अनुभव कर रहा हूँ, क्योंकि मैं सामान्य श्रावक होते हुए श्रमणों को प्रेरणा की बात कर रहा हूँ।
अंत में निवेदन है कि उपर्युक्त लेख के द्वारा किसी की अविनय, अशातना हुई हो, कोई आगम के प्रतिकूल प्ररूपणा हो गई हो तो करबद्ध सभी पाठकवृन्द से क्षमा चाहता हूँ तथा आशा करता हूँ कि श्रमणश्रमणियाँ आदर्श एवं पारदर्शी साधना में आगे अग्रसर होंगे।
-गौतम रोड़ लाइन्स, बूंदी (राज.)
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