SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 146 जिनवाणी || 10 जनवरी 2011 सम्बन्ध नहीं होता, मंदिर-मस्जिद के झगड़ों से इनका कोई वास्ता नहीं होता। ऐसे गुरु स्वयं अपना परिशोधन कर स्वयं की अंतश्चेतना जगाते हुए दूसरों को कुंठाओं एवं कुचक्रों में फंसने नहीं देते। उनकी नकारात्मक सोच सकारात्मक कर देते हैं। आज युवा गुरु को पहचान नहीं पा रहे हैं । वे सही जानकारी के अभाव में इधर-उधर भटक रहे हैं। युवा को चाहिए कि वह सच्चे गुरु की पहचान समझें, स्वीकार करने से पूर्व उन्हें टटोले, निश्चित रूप से वे गुरु आपके अपने सिद्ध होंगे। विवेकानन्द ने परमहंस को ढूंढा ।आचार्य पूज्य धर्मदासजी महाराज साहब को गुरु की खोज के लिए जंगलों एवं पर्वतों में प्रयास करना पड़ा । हमारे गुरु की साधना एवं समाचारी उच्च कोटि की है। आध्यात्मिक गुरु आज की आवश्यकता है। युवा पीढ़ी को सन्मार्ग पर सद्गुरु ही ला सकते हैं, क्योंकि इनके 'गुरुत्व' का आभामण्डल प्रभावशाली होता है। उनकी कथनी एवं करनी में अन्तर नहीं होता, ऐसी ही प्रतिभा के धनी आचार्यप्रवर पूज्य की हीराचन्द्र जी महाराज हैं जिनके आह्वान पर युवा पीढ़ी व्यसनमुक्ति के लिए प्रत्याख्यान हेतु उमड़ पड़ती है, जिनके पावन चरणों में नियमव्रतों का अम्बार लगा दिया जाता है। ये ऐसे गुरु हैं जो सत्कर्म करने का सार्वभौम संदेश देते हैं। आध्यात्मिक गुरु संदेश देते हैं-“उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।" अर्थात् उठो, जागो और रुको नहीं, जब तक कि जीवन के लक्ष्य तक नहीं पहुँच जाओ। ऐसे गुरु युवाओं के आदर्श होते हैं जिनमें जीवन के आदर्शों की चरम गुणवत्ता झलकती है। • आज के अधिकांश युवा कागज की नाव के सहारे महासागर को पार करना चाहते हैं, दिखावें में विश्वास करते हैं, नजर नींव की तरफ न जाकर कंगूरे पर जाती है। वे ऐसे गुरु को ढूंढने का प्रयास करते हैं जो उनके स्वार्थों की पूर्ति कर सके। सब कुछ तैयार करके 'गुणवत्ता' की छूट पिला दें, जिससे सभी कार्य सिद्ध हो जायें। ऐसी मानसिकता के व्यक्ति धर्म के मर्म को नहीं जानते । गुरु की सच्ची महिमा को नहीं पहचानते। लेकिन गुरु तो एक सांचा है जिसमें युवा स्वयं ढल सके एवं संवर सके। . आज युवाओं में श्रद्धा, समर्पण एवं आस्था की कमी है, उन्हें आज ही परिणाम चाहिए, कल का धीरज उनमें नहीं है। ऐसे में वे गुरु के पास आना ही नहीं चाहते, यदि आते हैं तो नहीं के बराबर । लेकिन गुरु में तो 'गुरुत्वाकर्षण बल होता है। अपने प्रभाव से प्रभावित कर लेते हैं तथा आध्यात्मिकता जागृत कर देते हैं। आध्यात्मिकता वह है जिसमें व्यक्ति की भावनाओं का स्तर ऊँचा उठे अर्थात् उसका अन्तरंग और उसकी मनोभावना विकसित हो। यदि भावनाएँ ऊँची हैं तो व्यक्तित्व उच्च होगा। आध्यात्मिक गुरु गुलाब की तरह खिलना एवं महकना सिखाते हैं, चन्दन की तरह शीतलता हमारे जीवन में भरते हैं। हमारे भीतर दीपक की तरह आलोकित भावनाओं की ज्योति जगाते हैं तथा जीवात्मा को विकसित करते हैं। गुरु कुशल कारीगर तथा कुम्भकार की तरह होते हैं जो कुम्भ' का निर्माण करते हैं। मिट्टी से बना वही कुम्भ लोगों को शीतल जल प्रदान करता है। सच्चा गुरु वही होता है, जो स्वयं वीतरागता को अपनाता है तथा दूसरों को सुगमता की राह दिखाता है जिससे अन्य लोग भी अपना जीवन धन्य कर सकें । अतः युवा पीढ़ी स्वयं चयन करे कि उसे किस तरह के गुरु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy