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|| 10 जनवरी 2011 ||
जिनवाणी | की शरण में रहना चाहिए।
__एक छोटा सा विद्यार्थी जिसके न माँ थी, न पिता, जिसके पास न मकान था न जायदाद, लेकिन उसके भीतर गुरु की आध्यात्मिकता थी, दृढ़ मनोबल एवं विश्वास था। उसने गरीबों की सेवा में प्यार देखा, सेवा के लिए अपने आपको समर्पित कर दिया एवं वह 'कागासा' जापान का गांधी बन गया । चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को गढ़ा, गुरु रामदास ने शिवाजी को गढ़ा । द्रोणाचार्य के मना करने पर भी अगाध श्रद्धा एवं समर्पण द्वारा एकलव्य अच्छा एवं निपुण धनुर्धर बन गया। यह श्रद्धा एवं समर्पण से ही संभव हुआ।
आध्यात्मिकता की कुंजी श्रद्धा है, सफलता की जननी श्रद्धा है। श्रद्धा गुरु के प्रति होनी चाहिए, यह कहाँ से कहाँ ले जाती है इसकी महिमा अपरम्पार है। ऐसे ही गुरुभगवन्त आचार्य हस्ती हुए हैं जिनके नाम से ही कार्य सिद्ध हो जाते हैं। श्री कृष्ण गीता में कहते हैं- श्रद्धावान् मनुष्य को ज्ञान प्राप्त होता है तथा विवेकहीन संशययुक्त मनुष्य परमार्थ पथ से भ्रष्ट होकर भटकता रहता है। न इसके लिए लोक रहता है न परलोक (भगवद्गीता 4/39-40)। लेकिन आज हमारी श्रद्धा लूली-लंगड़ी हो गयी है । गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा एवं समर्पण भावना में कमी हो रही है । गीता में कहा गया है कि गुरु वाक्य को ब्रह्म वाक्य' मानकर उसके प्रति दृढ़ श्रद्धा, उसके निर्देशों के अनुसार जीवन की हर क्रिया-पद्धति का निर्धारण हमें करना चाहिए। जब एक बार श्रद्धा आरोपित कर गुरु मान लिया तो किन्तु-परन्तु नहीं होना चाहिए। जो व्यक्ति समस्त कर्मों का परमात्मा में श्रद्धा के साथ अर्पण तथा विवेक द्वारा समस्त संशयों का नाश कर लेता है वह उन्मुक्त पुरुष कभी कर्म-बन्धन में नहीं बन्धता । वह सदैव सुखी तथा प्रसन्न मन वाला रहता है। श्रद्धा का आरोपण प्रगाढ़ हो जैसे पूर्णिया श्रावक का सामायिक के प्रति, परदेशी राजा का गुरु के प्रति, मीरा का कृष्ण के प्रति, हनुमान का राम के प्रति ।
यदि युवा पीढ़ी के भटकाव को रोकना है, यदि वह अपना जीवन संवारना चाहती है, आध्यात्मिकता की राह पर चल कर अपने जीवन का कल्याण कर आत्मशांति को प्राप्त करना चाहती है तो उसे सद्गुरु की शरण में आना ही पड़ेगा, क्योंकि गुरु के पास ही ऐसी शक्ति है जो उनके सोये हुए चैतन्य को जागृत कर सकती है। अतः युवाओं को ऐसे गुरु के समीप जाना चाहिए, उनसे साक्षात्कार करना चाहिए, क्योंकि उनके पास हर मर्ज की दवा है । बिगड़े हुए जीवन को या भटके हुए जीवन को गुरु की शरण ही सुधार सकती है।
- 25, बैंक कॉलोनी, महेश नगर, विस्तार 'बी' गोपालपुरा बाईपास, जयपुर-302001
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