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वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला २. क्षायिकसम्यक्त्व-अनन्तानुबंधीकी चार और मिथ्यात्वकी तीन इन सात प्रकृतियोंके सर्वथा क्षयसे जो निर्मल तत्त्व-प्रतीति होती है वह क्षायिक सम्यक्त्व कहलाती है।।
३. क्षयोपशमिक सम्यक्त्व-अनंतानुबंधि-क्रोध-मान-मायालोभ और मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व इन ६ प्रकृतियोंमें किन्हीं के उपशम और किन्हीं के क्षयसे तथा सम्यक्त्व प्रकृतिके उदयसे जो सम्यक्त्व होता है उस क्षायोपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं।
निश्चयसम्यग्दर्शनका कथनएषोऽहं भिन्नलक्ष्मो दृगवगमचरित्रादिसामान्यरूपो ह्यन्यद्यत्किंचिदाभाति बहुगुणिगणवृत्तिलक्ष्म परं तत् । धर्म चाधर्ममाकाशरसमुखगुणद्रव्यजीवान्तराणि मत्तः सर्व हि भिन्नं परपरिणतिरप्यात्मकर्मप्रजाता॥ ८॥ निश्चित्येतीह सम्यग्विगतसकलदृग्मोहभावः स जीवः सम्यग्दृष्टिर्भवेनिश्चयनयकथनात् सिद्धकल्पश्च किंचित् । (ख) 'अनंतानुबंधि-क्रोध-मान-माया-लोभाना सम्यक्त्व-मिथ्यात्व
सम्यग्मिथ्यात्वानां च सप्तानामुपशमादुपजातं तत्त्वश्रद्धानं औपशमिकं सम्यक्त्वं ।'
-विजयोदया ३१ 'तासामेव सप्तप्रकृतीनां क्षयादुपजातवस्तु-याथात्म्यगोचरा श्रद्धा क्षायिकदर्शनम् ।'
--विजयोदया ३१ * 'तासामेव कासांचिदुपशमात् अन्यासां च क्षयादुपजातं श्रद्धानं क्षयोपशमिकम् ।'
-विजयोदया ३१ *एगो मे सस्सदो अप्पा णाणदंसणलक्खणो। सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा ॥ --नियमसार
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