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वीर सेवामन्दिर-ग्रन्थमाला
भावार्थ - तोक्षमार्ग दो प्रकारका है— व्यवहार मोक्षमार्ग और निश्चय मोक्षमार्ग । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकू - चारित्र इन तीनोंकी एकता व्यवहार मोक्षमार्ग है । और इन तीनों स्वरूप स्वात्मानुभूति निश्चय मोक्षमार्ग है । जो भव्य जीव मोक्षमार्ग-कथनकी इस द्विविधताको जानकर आत्मस्वरूप में लीन होते हैं और आत्माको पुद्गलादि परद्रव्योंसे सर्वथा भिन्न सच्चिदानन्दमय एक ज्ञायकस्वरूप ही अनुभव करते हैं, वे शीघ्र ही आत्मसिद्धि प्राप्त होते हैं ।
व्यवहार सम्यक्त्वका स्वरूप
यच्छुद्धानं जिनोक्तेरथ नयभजन | त्सप्रमाणादवाध्यात्प्रत्यक्षाच्चानुमानात् कृतगुणगुणिनिर्णीतियुक्तं गुणाढ्यम् । तत्त्वार्थानां स्वभावाद् ध्रुवविगमसमुत्पादलक्ष्मप्रभाजां तत्सम्यक्त्वं वदन्ति व्यवहरणनयाद् कर्मनाशोपशान्तेः ||७||
अर्थ-स्वभावसे उत्पाद, व्यय और धौव्यलक्षणको लिये हुए तत्त्वार्थोका - जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सात तत्वोंका अथवा पुण्य-पापसहित नव पदार्थोंकाजिनेन्द्र भगवान् के वचनों( आगम ) से, प्रमाणसहित नैगमादिनयोंके विचार से, अबाधित ( निर्दोष ) प्रत्यक्ष तथा अनुमानसेऔर कर्मोंके ( दर्शनमोहनीय तथा अनन्तानुबन्धी कषायों ) के क्षय, उपशम तथा क्षयोपशम से गुण-गुणीके निर्णय से युक्त तथा निःशंकितादिगुणोंसे सहित जो श्रद्धान होता है उसे व्यवहारनय से सम्यक्त्व कहते हैं - अर्थात् वह व्यवहार सम्यक्त्व है ।
भावार्थ - जीव, जीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सप्त तत्वोंका अथवा पुण्य-पापसहित नवपदार्थों का विप
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