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अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड
पता चला है जिन्हें प्रस्तावनाके पृष्ठ ३४ पर नोट किया गया है, अतः ये सब विद्वानों के लिये खोजके विषय हैं। संभव है इस खोजमें कविवरके और भी किसी ग्रन्थरत्नका पता चल जाय । ___ यहाँ पर मैं इतना और भी प्रकट कर देना चाहता हूँ कि कुछ विद्वान 'रायमल्ल' नामसे भी हुए हैं, जिन्हें कहीं कहीं 'राजमल्ल' भी लिखा है; जैसे (१) हुंबड़ ज्ञातीय वर्णी रायमल्ल, जिन्होंने वि० सं० १६६७ में भक्तामर स्तोत्रकी साधारण संस्कृत टीका लिखी है। और (२)मूलसंघी भट्टारक अनन्तकीसिके शिष्य ब्रह्म रायमल्ल, जिन्होंने वि० सं० १६१६में 'हनुमानचौपई' और सं० १६३३में भविष्यदत्त कथा' हिन्दीमें लिखी है । ये ग्रन्थकार अपने साहित्यादिकपरसे लाटीसंहितादि उक्त पाँचों मूल ग्रन्थोंके कर्ता कविराजमल्लसे तथा समयसारनाटकको निर्दिष्ट हिन्दीटीकाके कर्ता पाँडे(पं०) राजमल्लसे भी बिल्कुल भिन्न हैं । इसी तरह संवत् १६१५में पं०पद्मसुन्दरके द्वारा निर्मित 'रायमल्लाभ्युदय' नामका काव्यग्रन्थ जिन 'रायमल्ल के नामाङ्कित किया गया है उनका भी 'कविराजमल्ल के साथ कोई मेल नहीं है-वे हस्तिनागपुरके निकटवर्ती चरस्थावर (चरथावल) नगरके निवासी गोइलगोत्री अग्रवाल 'साहु रायमल्ल' हैं; जो दो स्त्रियोंके स्वामी थे, पुत्रकुटुम्बादिकी विपुल सम्पत्तिसे युक्त थे और उन्होंने श्रोपद्मसुन्दरजीसे उक्त चतुर्विंशतिजिनचरित्रात्मक काव्यग्रन्थका निर्माण कराया है। और इसलिये कविराजमल्लके ग्रन्थों तथा उनके विशेष परिचयकी खोजमें नामकी समानता अथवा सदृशताके कारण किसीको भी धोखेमें न पड़ना चाहियेसाहित्यकी परख (अन्तःपरीक्षण), रचनाशैलीकी जाँच, पारस्परिक तुलना
और संघ तथा अाम्नाय आदिका ठीक सम्बन्ध मिलाकर ही कविराजमल्ल के विषयका कोई निर्णय करना चाहिये।
वीरसेवामन्दिर, सरसावा ।
ता० ११-१-१६४५ )
जुगलकिशोर मुख़्तार
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