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________________ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड सकता है कि यह कविवरकी पहलेकी रचना हो तथा गद्य और पद्यकी उनकी भाषामें भी अन्तर हो । कुछ भी हो, अपनी भाषा परसे यह आगराकी बनी हुई तो मालूम नहीं होती-मारवाड़ आदिकी तरफके किसी स्थानकी बनी हुई जान पड़ती है। कब बनी? यह कुछ निश्चितरूपसे नहीं कहा जासकता। यदि ये ही कवि राजमल्लजी इसके कता हों तो यह होसकता है कि इसकी रचना जम्बूस्वामिचरितकी रचना गतसंवत् १६३२से पहले हुई हो; क्योंकि जम्बूस्वामिचरित पर उन विचारों एवं संस्कारोंकी छाया पड़ी हुई जान पड़ती है जिनका पूर्वमें समयसारकी टीका लिखते समय उत्पन्न होना स्वाभाविक है और जिसका नमूना आगे उक्त चरितके परिचयके अवसर पर दिया जायगा। यह टीका किसके लिये अथवा किनको लक्ष्य करके लिखी गई, यह भी निश्चितरूपसे नहीं कहा जासकता। क्योंकि टीकामें ऐसा कोई उल्लेख नहीं है, जब कि कविवरके दूसरे ग्रन्थोंमें इस प्रकारका उल्लेख देखा जाता है कि किस ग्रन्थका निर्माण किसके निमित्त अथवा किसकी प्रेरणाको पाकर हुया है, और जिसे आगे यथावसर प्रकट किया जायगा। यहाँ इस टीकाका प्रारम्भिक भाग जो 'नमः समयसाराय' इस मंगल कलशके अनन्तर उसकी व्याख्याके श्राद्य अंशके रूपमें है नीचे दिया जाता है, जिससे पाठकोंको टीकाकी भाषा और उसकी लेखन-पद्धतिका कुछ अनुभव प्राप्त हो सकेः _ "टीका-भावाय नमः भाव शब्दै कहिजै पदार्थ । पदार्थ संज्ञा छै सत्वस्वरूपकहुं । तिहते यहु अथु ठहरायौ जु कोई सास्वतो वस्तुरूप तीहैं म्हांको नमस्कारु । सो वस्तुरूप किसौ छै । चित्स्वभावाय चित् कहिजै चेतना सोई छै स्वभावाय कहतां स्वभाव सर्वस्व जिहिकौं तिहिकौं म्हांको नमस्कारु । इहिं विशेषण कहतां दोइ समाधान हौहि छै। एक तौ भाव कहतां पदार्थ, जे पदार्थ केई चेतन छै, केई अचेतन छ, तिहिं माहै चेतन पदार्थ नमस्कारु करिवा योग्य छै, इसौ अy ऊपजै छै । दूजो समाधान इसौ जु यद्यपि वस्तुको गुण वस्तु ही माहै गर्भित छै, वस्तु गुण एक ही सत्व छै Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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