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________________ ७६ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड हुआ है, वे धार्मिक भावनात्रोंसे प्रेरित हैं, परोपकारके लिये बद्धकक्ष अथवा कृतसंकल्प हैं और जम्बूस्वामिचरितकी रचनाके बहाने अपने आत्माको पवित्र करनेमें लगे हुए हैं। साथ ही, गद्य-पद्य-विद्याके विशारद हैं, काव्यकलामें प्रवीन हैं और उनका कोई अच्छा कविकार्य पहलेसे जनताके सामने आकर पसन्द किया जा चुका है; इसीसे मथुरामें जैनस्तूपोंकी प्रतिष्ठाके समय(सं० १६३१ में) उनसे जम्बूस्वामिचरितके रचनेकी खासतौर पर प्रार्थना की गई है। आगरामें रहते हुए, मथुरा-जैनस्तूपोंका जीर्णोद्धार करानेवाले अग्रवालवंशी गर्गगोत्री साहु टोडरका उन्हें सदाश्रय तथा सत्संग प्राप्त हैं और उन्हींके निमित्तको पाकर वे कृष्णामंगल चौधरी और गढमल्ल साहु जैसे कुछ बड़े राज्याधिकारियों तथा सजनपुरुषोंके निकट परिचयमें आए हुए हैं । साथ ही अकबर बादशाहके प्रभावसे प्रभावित है, मंगलाचरणके अनन्तर ही उनका स्तवन कर रहे हैं, उनके राज्यको सुधर्मराज्य मान रहे हैं और उनकी राजधानी आगरा नगरको 'सारसंग्रह' के रूपमें देख रहे हैं । आगरासे चलकर कविवर नागौर पहुँचे हैं, वहाँ श्रीमालज्ञातीय संघाधिपति ( संघई ) राजाभारमल्लके व्यक्तित्वसे बहुत प्रभावित हुए हैं, उनके दान-सम्मान तथा सौजन्यमय व्यवहारने उन्हें अपनी अोर इतना आकृष्ट कर लिया है कि वे अपने व्यक्तित्वको भी भूल गये हैं । एक दिन राजा भारमल्लको बहुतसे कौतुकपूर्ण छंद सुनाकर वे उनके विनोदमें भाग ले रहे हैं और उनकी तदनुकूल रुचिको पाकर उनके लिये 'पिङ्गल'नामके एक गंगाजमुनी छन्दशास्त्रकी रचना कर रहे हैं, जो प्रायः उमी कौतुकपूर्ण मनोवृत्ति तथा विनोदमय स्थिरिटको लिये हुए है और जिसमें अनेक अति. शयोक्तियों एवं अलंकारोंके साथ राजा भारमल्लका खुला यशोगान किया गया है और इस यशोगानको करते हुए वे स्वयं ही उसपर अपना आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं और उसे भारमल्लके व्यक्तित्वका प्रभाव बतला रहे हैं। नागौरसे किसी तरह विरक्त होकर कविवर स्वयं ही वैराट नगर पहुँचे हैं और उसे देखकर बड़े प्रसन्न हुए हैं । यह नगर उनको बहुत पसन्द ही Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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