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________________ प्रस्तावना ७५ दूसरे पद्यमें यह स्पष्ट घोषित किया है कि-'जो चित्तमें भी देवदत्तपुत्रभारमल्लका अमंगल चिन्तन करते हैं वे सब लोगोंके देखते-देखते पुर, देश, लक्ष्मी तथा भूमिसे परित्यक्त हुए नष्ट हो गये हैं।' इस पद्यमें किसी खास आँखोंदेखी घटनाका उल्लेख संनिहित जान पड़ता है। हो सकता है कि राजा भारमल्लके अमंगलार्थ किन्हींने कोई षड्यन्त्र किया हो और उसके फलस्वरूप उन्हें विधि( दैव )के अथवा बादशाह अकबरके द्वारा देशनिर्वासनादिका ऐसा दण्ड मिला हो जिससे वे नगर, देश, लक्ष्मी और भूमिसे परिभृष्ट हुए अन्तको नष्ट होगये हों। उपसंहार-- - इस प्रकार यह कविराजमल्ल के 'पिंगलग्रन्थ',ग्रन्थको उपलब्धप्रति और राजा भारमल्लका संक्षिप्त परिचय है । मैं चाहता था कि ग्रन्थमें आए हुए छंटोंका कुछ लक्षण-परिचय भी पाठकोंके सामने तुलनाके साथ रक्खू परन्तु यह देखकर कि प्रस्तावानाका कलेवर बहुत बढ़ गया है और इधर इस पूरे ग्रन्थको ही अब वीरसेवामंदिरसे प्रकाशित कर देनेका विचार हो रहा है, उस इच्छाको संवरण किया जाता है। इस परिचयके साथ कविराजमल्लके सभी उपलब्ध ग्रन्थोंका परिचय समाप्त होता है। इन ग्रन्थोंमें कविराजमल्लका जो कुछ परिचय अथवा इतिवृत्त पाया जाता है उस सबको इस प्रस्तावनामें यथास्थान संकलित किया गया है। और उसका मिहावलोकन करनेसे मालूम होता है किः___ कविवर काष्ठासंधी माथुरगच्ची पुष्करगणी भट्टारक हेमचन्द्रकी अाम्नायके प्रमुख विद्वान हैं । जम्बूस्वामिचरितको लिखते समय (वि० सं० १६३२में) वे अागरामें स्थित हैं, युवावस्थाको प्राप्त हैं दो एक वर्ष पहले मथुराकी एक दो बार यात्रा कर पाए हैं और वहाँके जीर्ण-शीर्ण तथा उनके स्थान पर नवनिर्मित जैन स्तूपोंको देख पाए हैं, जैनागम-ग्रन्थोंके अच्छे अभ्यासी हैं, आध्यात्मिक ग्रन्थोंके अध्ययनसे उनका अात्मा ऊँचा उठा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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