SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड इस पद्यमें भारमल्लके प्रतापका कीर्तन करनेमें अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए लिखा है कि- 'एक नौकर को साथ लेकर एक करोड़ तककी रकम शाहके भंडारमें भरदी जाती थी-मार्गमें रकमके छीन लिये जाने आदिका कोई भय नहीं ! और एक कीर्ति पढ़ने वाले भोजकीको दायिमी ( स्थायी ) दान तक दे दिया जाता था - ऐसा करते हुए कोई संकोच अथवा चिन्ता नहीं ! ( ये बातें भारमल्लके प्रतापकी सूचक हैं ) । भारमल्लके प्रतापका वर्णन करने के लिये ( सहस्रजिह्न ) शेषनाग भी समर्थ है, हमारे जैसा एक जीभवाला कैसे समर्थ हो सकता है ?' ७२ अब छन्दोंके उदाहरणोंमें दिये हुए संस्कृत पद्योंके भी कुछ नमूने लीजिये, और उनपर से भी राजा भारमल्लके व्यक्तित्वादिका अनुमान कीजिये : ! अयि विधे । विधिवत्तव पाटवं यदिह देवसुतं सृजत स्फुटं । जगति सारमयं करुणाकरं निखिलदीन समुद्धरणक्षमं || (द्रुतविलं ० ) 'हे विधाता ! तेरी चतुराई बड़ी व्यवस्थित जान पड़ती है, जो तूने यहाँ देवसुत भारमल्लकी सृष्टि की है, जो कि जगतमें सारभूत है, करुणाकी खानि है और सम्पूर्ण दीनजनोंका उद्धार करनेमें समर्थ है ।' मन्ये न देवतनुजो मनुजोऽयमेव, नूनं विधेरिह दयार्दितचेतसो वै । जैवित्त (जीवत्व ? ) हेतुवशतो जगती जनानां, श्रेयस्तरुः फलितवानिव भारमल्लः || २५६ ॥ ( वसंततिलक) यहाँ कविवर उत्प्रेक्षा करके कहते हैं कि - 'मैं ऐसा मानता हूँ कि यह देवतनुज भारमल्ल मनुज नहीं है, बल्कि जगतजनोंके जीवनाथं विधाताका चित्त जो दयासे श्रार्दित हुआ है उसके फलस्वरूप ही यह 'कल्याणवृक्ष' यहाँ फला है - अर्थात् भारमल्लका जन्म इस लोकके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy