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अध्यात्मकमलमार्तण्ड अमृतसे, अपने अपने विषयको उपमामें, बढ़ा हुआ बतलाया है अर्थात् यह दर्शाया है कि ये सब अपने प्रसिद्ध गुणोंकी दृष्टि से राजा भारमल्लकी बराबरी नहीं कर सकते। बलि-वेणि-विक्रम-भोज-रविसुत-परसराम-समंचिया, हय-कनक-कुंजर-दान-रस-जसबेलि अहनिसि सिंचिया। तब समय सतयुग समय त्रेता समय द्वापर गाइया,
अब भारमल्ल कृपाल कलियुग कुलहँ कलश चढ़ाइया (हरिगीत) ___ यहाँ राजा बलि, वेणि, विक्रम, भोज, करण और परशुरामके विषयमें यह उल्लेख करते हुए कि उन्होंने घोड़ों, हाथियों तथा सोनेके दानरूपी रससे यश-बेलकों दिनरात सिंचित किया था, बतलाया है कि उनका वह समय तो सत्युग, त्रेता तथा द्वापरका था; परन्तु आज कलियुगमें कृपालु राजा भारमल्लने उन राजाओंके कीर्तिकुलगृह पर कलश चढ़ा दिया है-अर्थात् दानद्वारा सम्पादित कीर्तिमें आप उनसे भी ऊपर होगये हैं-बढ़ गये हैं। सिरिमाल सुवंसो पुहमि पसंसो संघनरेसुर धम्मधुरो, करुणामयचित्तं परमपवित्तं हीरविजे गुरु जासु वरो। हय-कुंजर-दानं गुणिजन-मानं कित्तिसमुद्दह पार थई, दिनदीन दयालो वयणरसालो भारहमल्ल सुचक्कवई ।। (सुन्दरी)
इसमें अन्य सुगम विशेषणोंके साथ भारमल्लके गुरुरूपमें हीरविजयसूरिका उल्लेख किया है, भारमल्लकी कीर्तिका समुद्र पार होना लिखा है और उन्हें 'सुचक्रवर्ती' बतलाया है। मरणे विहिणा घडियो, कोविह एगो वि विस्ससव्वगुणकाय । सिरिमालभारमल्लो, णं माणसथंभो णरगव्वहरणाय ॥ (स्कंध)
यहाँ कविवर उत्प्रेक्षा करके कहते हैं कि 'मैं ऐसा मानता हूँ कि विधाता ने यदि विश्वके सर्वगुण-समूहको लिये हुए कोई व्यक्ति घडा है तो
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