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प्रस्तावना
"ठाड़े तो दरबार, राजकुँवर वसुधाधिपति । लीजे न-इकु जुहारु, भारमल्ल सिरिमालकुल १६४।।" (सोरठा)
(६) इस ग्रन्थमें राजा भारमल्लको श्रीमालचूडामणि, साहिशिरोमणि, शाहसमान, उमानाथ, संघाधिनाथ, दारिद्रधूमध्वज, कीर्तिनभचन्द्र, देव-तरुसुरतरु, श्रेयस्तरु, पतितपावन, पुण्यागार, चक्री-चक्रवर्ती, महादानी, महामति, करुणाकर, रोरुहर, रोरु-भी-निकन्दन, अकबरलक्ष्मी-गौ-गोपाल, जिनवरचरणकमलानुरक्त और निःशल्य जैसे विशेषणोंके साथ स्मरण किया गया है और उनका खुला यशोगान करते हुए प्रशंसामें-उनके दान-मान प्रतापादिके वर्णनमें कितने ही पद्य अनेक छंदोंके उदाहरणरूपसे दिये हैं। यहाँ उनमेंसे भी कुछ पद्योंको नसुनेके तौर पर उद्धृत किया जाता है। इससे पाठकोंको राजा भारमल्लके व्यक्तित्वका और भी कितना ही परिचय तथा अनुभव प्राप्त हो सकेगा। साथ ही, इस छंदोविद्या-ग्रन्थके छंदोंके कुछ और नमूने भी उनके सामने अाजायँगे:
अवणिउवण्णा पादप रे, वदनरवण्णा पंकज रे । चरणमवण्णा गजपति रे, नैनसुरंगा सारंग रे। तनुरुहचंगा मोरा रे, बचनअभंगा कोकिल रे। तरुणि-पियारा बालक रे, गिरिजठरविदारा कुलिसं रे।।
अरिकुलसंघारा रघुपति रे, हम नैनहु दिट्ठा चंदा रे। . ___ दानगरिट्ठा विक्रम रे, मुख चचै सुमिट्ठा अमृत रे ॥१०॥ न न पादप-पंकज-गजपति-सारंग-मोरा-कोकिल-बाल-तुलं, न न कुलिसं रघुपति चंदा नरपति अमृत किमुत सिरीमालकुलं । बकसै मजराजि गरीबणिवाज अवाज सुराज विराजतु है, संघपत्ति सिरोमणि भारहमल्लु घिरदु भुवप्पति गाजतु है (पोमावती)
इन पद्योंमें राजा भारमल्लको पादप, पंकज, गजपति सारंग (मृग) मोर, कोकिल, बालक, कुलिश (वज्र), रघुपति, चंद्रमा, विक्रमराजा और
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