________________
अध्यात्मकमलमार्तण्ड होता है कि राजा भारमल्ल (औसतन) पचास हजार टका प्रतिदिन बादशाह (अकबर ) के खजानेमें दाखिल करते थे, पचास हजार टकर मजदूरों तथा नौकरोंको बाँटते थे और पचीस हजार टका उनके पुत्रोंपौत्रादिकोंका प्रतिदिनका खर्च था
सवालक्ख उम्गवइ भानु तह ज्ञानु गणिज्जई, टंका सहस पचास साहि भंडारु भरिजइ। टका सहस पचास रोज जे करहिं मसक्कति,
टंका सहस पचीस सुतनुसुत खरचु दिन-प्रति । सिरिमाल वंस संघाधिपति बहुत बढे सुनियत श्रवण । कुलतारण भारहमल्ल-सम कौन बढउ चढिहै कवण ।।१२।।
(७) राजा भारमल्ल अच्छी चुनी हुई चतुरंग सेना रखते थे, जिसमें उनकी हाथियोंकी सेनाको घूमती हुई मंधहस्तियोंकी सेना लिखा है
"घुम्मंतगंधगयवरसेना इय मार मल्लस्स ॥१७॥
(८) राजा भारमल की जोड़का कोई दूसरा ऐसा वणिक (व्यापारी) शायद उस समय (अकबर के राज्यमें) मौजूद नहीं था जो बड़भागी होनेके साथ साथ विपुल लक्ष्मीसे परिपूर्णगृह हो, करुणामय प्रकृतिका धारक हो और नित्य ही बहुदान दिया करता हो। श्रापका प्रभाव भी बहुत बढ़ा चढ़ा था, अकबर बादशाहका पुत्र राजकुमार ( युवराज) भी आपके दरबारमें मिलने के लिये पाता था और सूचना भेजकर इस बातकी प्रतीक्षामें रहता था कि आप अाकर उसकी 'जुहार' (सलाम) कबूल करें । इन दोनों बातोंको कविवरने दोहा और सोरठा छंदोंके उदाहरमोंमें निम्न प्रकारसे व्यक्त किया है। पिछली बात ऐसे रूपमें चित्रित की गई है जैसे कविवरकी स्वयं आँखों-देखी घटना है"बड़भागी घर लच्छि, बहु, करुणामय दिनदान । नहिं कोउ वसुधावधि वणिक,भारहमल्ल-समान १८८॥"(दोहा)
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org