SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना ८७ "देवदत्तकुलकमलदिवाकर सुजसु पयासियं, : सिरीमालवरवंस अवनिपति पुहमि विकासियं । सांभरि सर डिंडवान सकलधर खानि वखाणियं, भारहमल्ल विमलगुण अकबरसाहि समाणियं॥१७२शा(गिंदुक) जासु [य] वुट्टि होइ णवणिधि घर कामिणि कणक-कुंजरं, मंगल गीत विनोद विचिह परि दुंदुहिसद्द सुन्दरं । सवालक्ख उप्पजइ दिनप्रति तेत्तियं दिनदानियं, भारमल्ल सब साहसिरोमणि साहिअकबरमाणियं ॥१७४(दुवई) "तौ मानियहि भंडार, टंका कोडि पचास जइ, कलधौतमयं । लाखनिसहु व्योहार, तो कविजन सेवक अहव, देवतणमयं १६६ ___ (चूलिकाचारण छंद) (५) जिन स्थानोंसे राजा भारमल्लको विपुल धन-सम्पत्तिकी प्राप्ति होती थी उनका उल्लेख 'मालाधर' छंदके उदाहरणमें निम्न प्रकारसे किया गया है चरणयुग-सेविका मनहु दासी साकुंभरी में अखिल यहु चेटिका सरस डीडवाना पुरी। अवनि अनुकूलिया द्रविण-मोल-लीया नगा,... . निखिलमिय जस्स सो जयउ भारमल्लो णिो॥२७शा .. (६) राजा भारमल्लके रोजाना खर्चका मोटा लेखा लगाते हुए जो "छप्पय छंदका उदाहरण दिया है वह निम्न प्रकार है, और उससे मालूम * साकुम्भरी, डीडवानापुरी और मुकातसर इन तीन स्थानों पर तीन टकसाले भी थीं ऐसा सुन्दरी छंदके निम्न उदाहरणसे प्रकट है:-.. डिडिवान मुकातासर सहियं साकुम्भरि सौं टकसार तयं । भणि भारहमल्लं अरिउरसल्लं साहि सनाखत कित्तिमयं ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy