________________
प्रस्तावनी
श्रार वह श्रीमालाका कण्ठाभरण बना। कितनी सुन्दर कल्पना है !
(३) भारमल्लके षुत्रों में एकका नाम 'इन्द्रराज' और दूसरेका 'अजयराज था
इन्द्रराज इन्द्रावतार जसु नंदनु दि8, अजयराज राजाधिराज सब कजगरि₹ । स्वामी दास निवासु लच्छिबहु साहिसमार्ण, सोयं भारहमल्ल हेम-हय-कुअर-दानें ॥ १३१ ।। (रोडक)
इन दोनों पुत्रोंके प्रतापादिका कितना ही वर्णन अनेक पद्योंमें दिया है । और भी लघुपुत्र अथवा पुत्रीका कुछ उल्लेख जान पड़ता है; परन्तु वह अस्पष्ट हो रहा है।
(४) राजा भारमल्ल नागौर में एक बहुत बड़े कोटयाधीश ही नहीं किन्तु धनकुबेर थे, ऐसा मालूम होता है। आपके घरमें अटूट लक्ष्मी थी, लक्ष्मीका प्रवाह निरन्तर बहता था, सवा लाख प्रतिदिनको श्राय थी, देश
*श्रीमालाके अलावा भारहमल्लकी एक दूसरी स्त्री छजू जान पड़ती है, जो इन्द्रराज पुत्रकी माता थी; जैसा कि उत्तराध्ययनवृत्तिकी निम्न दानप्रशस्तिसे प्रकट है और जिसमें भारहमल्लको 'संघई', उनकी स्त्री छजूको संघवणिं और पुत्र इन्द्रराजको संघवी लिखा है। यह भी सम्भव है कि छजू श्रीमाला का ही नामान्तर अथवा मूल नाम हो; परन्तु ग्रन्थमें (त्रिभंगी छंदके उदाहरणमें) 'मत सौकि सुनावहु' जैसे वाक्य-द्वारा श्रीमालाकी सौतका संकेत होनेसे यह सम्भावना कुछ कम जान पड़ती है:
"श्रीमत् नृप विक्रमतः संवत् १६३६ वर्षे पातिसाह श्री अकबरराज्ये श्री बइराटनगरे श्रीमालज्ञातीय संघइ भारहमल । तत् भार्या संघवणि छजू तत् पुत्ररत्न संघवी इन्द्राराजेन स्वपुण्याथै वृत्तिरियं विहरापिता। गणिचरित्रोदयानां चिरं नन्दतु ॥"-उक्त प्रशस्तिसंग्रह द्वि०भाग पृ०१२६
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org