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________________ अध्यात्मकमलमार्तण्ड सिक परिचय भी संक्षेपमें संकलित किया जाता है, जो उक्त पिङ्गलग्रंथपरसे उपलब्ध होता है। साथमें यथावश्यक ऐसे परिचयके कुछ वाक्योंको भी ब्रेकटादिमें उनके छंदनाम सहित उद्धृत किया जाता है, और इससे पिङ्गल. ग्रन्थमें वर्णित छंदों के कुछ नमूने भी पाठकोंके सामने अाजायँगे और उन परसे उन्हें इस ग्रंथकी साहित्यिक स्थिति एवं रचना-चातुरी आदिका भी कितना ही परिचय सहजमें प्राप्त हो जायगाः (१) भारमल्लके पूर्वज 'रंकाराऊ' थे, वे प्रथम भूपाल (राजपूतx) थे, पुनः श्रीमाल थे, श्रीपुरपट्टणके निवासी थे, फिर बाबू देशमें गुरुके उपदेशको पाकर श्रावकधर्मके धारक हुए थे, धन-धर्मके निवास थे, संघके तिलक थे और सुरेन्द्र के समान थे। उन्हींकी वंश-परम्परामें धर्मधुरंधर राजा भारमल्ल हुए हैं पढमं भूपालं पुणु सिरिमालं सिरिपुरपट्टणवासु , पुणु आबूदेसिं गुरुउवएसिं सावयधम्मणिवासु । धणधम्महणिलयं संघहतिलयं रंकाराउ सुरिंदु , ता वंशपरंर धम्मधुरंधर भारहमल्ल णरिंदु ॥११॥ (मरहट्टा) (२) भारमल्लकी माताका नाम 'धरमो' और स्त्रीका नाम 'श्रीमाला' था, इस बातको कविराजमल्ल एक अच्छे अलंकारिक ढंगमें व्याक्त करते हुए 'पंकवाणि' छन्दके उदाहरणमें लिखते हैंस्वाति बुंद सुरवर्ष निरंतर, संपुट सीपि धमो उदरंतर। जम्मो मुकताहल भारहमल, कंठाभरण सिरीअवलीवल ||७|| इसमें बतलाया है कि सुर ( देवदत्त )वर्षाकी स्वातिबूंदको पाकर धर्मोंके उदररूपी सीपसंपुटमें भारमल्लरूपी मुक्ताफल (मोती) उत्पन्न हुआ x जासु पढमइ चंस रजपूत । श्रीरंकवसुधाधिपति जैन, धर्म-वरकमलदिनकर, तासु वंस राक्याणि सिरी,-मालकुलधुरधुरंधर । ||१२३।।(र१) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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