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________________ प्रस्तावना सबका दोहन एवं बालोडन करके अपना यह ग्रन्थ बनाया है। और इसलिये यह ग्रन्थ अपने विषयमें बहुत प्रमाणिक जान पड़ता है। ग्रन्थके अन्तिम पद्यमें इस ग्रन्थका दूसरा नाम 'छन्दोविद्या' दिया है और इसे राजाओंकी हृदयगंगा, गम्भीरान्तः सौहित्या, जैनसंघाधीश-भारहमल्लसम्मानिता, ब्रह्मश्रीको विजय करनेवाले बड़े बड़े द्विजराजोंके नित्य दिये हुए सैंकड़ों आशीर्वादोंसे परिपूर्णा लिखा है। साथ ही, विद्वानोंसे यह निवेदन किया है कि वे इस 'छन्दोविद्या' ग्रन्थको अपने सदनुग्रहका पात्र बनाएँ। वह पद्य इस प्रकार है क्षोणीभाजां हृत्सुरसरिदंभो गंभीरान्तःसौहित्यां जैनानां किल संघाधीशै रहमल्लैः कृतसन्माना । ब्रह्मश्रीविजई(यि)द्विजराज्ञां नित्यं दत्ताशीःशतपूर्ध्या विद्वांसः सदनुग्रहपात्रां कुर्वत्वेमां छन्दोविद्यां ।। इससे मालूम होता है कि यह ग्रन्थ उस समय अनेक राजाओं तथा बड़े बड़े ब्राह्मण विद्वानोंको भी बहुत पसन्द आया है । पिङ्गलके पद्योंपरसे राजा भारमल्ल जिन राजा भारमल्लके लिये यह पिङ्गल ग्रन्थ रचा गया है वे नागौरी तपागच्छकी अम्नायके एक सद्गृहस्थ थे*, वणिक्संघके अधिपति थे, . 'राजा' उनका सुप्रसिद्ध विशेषण था, श्रीमालकुलमें उन्होंने जन्म लिया था, 'रांक्याणि' उनका गोत्र था और वे 'देवदत्त' के पुत्र थे, इतना परिचय ऊपर दिया जा चुका है। अब राजा भारमल्लका कुछ अन्य ऐतिहा___ * आपके सहयोगसे तपागच्छ वृद्धिको प्राप्त हुआ था, ऐसा निम्न वाक्यसे स्पष्ट जाना जाता है जलणिहि-उवमाणिं श्रीतपानामगच्छिं, हिमकर जिम भूया भूपती भारमल्लः ॥२६४॥ (मालिनी) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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