SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना लिखे गये हैं + इसलिये उनमें किसी आम्नायविशेषके साधुअोंका वैसा कोई उल्लेख भी नहीं है। और इससे एक तत्त्व यह निकलता है कि कवि राजमल्ल जिसके लिये जिस ग्रंथका निर्माण करते थे उसमें उसकी अाम्नायके साधुओंका भी उल्लेख कर देते थे, अतः उनके ऐसे उल्लेखोंपरसे यह न समझ लेना चाहिये कि वे स्वयं भी उसी अाम्नायके थे। बहुत संभव है कि उन्हें किसी आम्नायविशेषका पक्षपात न हो, उनका हृदय उदार हो और वे साम्प्रदायिककट्टरताके पङ्कसे बहुत कुछ ऊंचे उठे हुए हों। ___ कविराजमल्लने दूसरे ग्रन्थोंकी तरह इस ग्रन्थमें भी अपना कोई खास परिचय नहीं दिया-कहीं कहीं तो "मल्ल भणइ' 'कविमल्ल कहै' जैसे वाक्यों द्वारा अपना नाम भी प्राधा ही उल्लेखित किया है। जान पड़ता है कविवर जहाँ दूसरोंका परिचय देनेमें उदार थे वहाँ अपना परिचय देनेमें सदा ही कृपण रहे हैं, और यह सब उनकी अपने विषयमें उदासीनवृत्ति एवं ऊंची भावनाका द्योतक है जिसकी शिक्षा उन्हें 'समयसार' परसे मिली जान पड़ती है-भले ही इसके द्वारा इतिहासज्ञोंके प्रति कुछ अन्याय होता हो। उक्त सातों संस्कृत पद्योंके अनन्तर प्रस्तावित छन्दोग्रंथका प्रारम्भ निम्न गाथासे होता है : + पंचाध्यायीके विषयमें इस प्रकारका स्पष्टीकरण ऊपर किया जा चुका है । और अध्यात्मकमलमार्तडके तृतीय चतुर्थ पद्योंसे प्रकट है कि उसकी रचना मुख्यतः अपने आत्मज्ञानके लिये और अपने आत्मासे संतानवर्ती मोहको तथा उस सम्यक्चरित्रकी च्युतिको दूर करनेके लिए की गई है जो दर्शन-ज्ञानसे युक्त और मोह-दोभसे विहीन होता है। इसके लिये विदधे स्वसंविदे' और 'गच्छत्वध्यात्म-कंज-धुमणि-परपरा-ख्यापनान्मे चितोऽस्तम्' ये वाक्य खास तौरसे ध्यानमें रखने योग्य हैं । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy