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________________ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड मुखकी मुस्कराहट और दृष्टिकटाक्ष (आँखोके संकेत ) परसे मुझे उनके मनका भाव कुछ मालूम पड़ गया, उनके उस मनोभिलाषको लक्ष्य में रखकर ही दिग्मात्ररूपसे यह नामका 'पिंगल' ग्रन्थ धृष्टता से प्रारम्भ किया जाता है ।' सातवें पद्य कविवर अपने मनोभावको व्यक्त करते हुए लिखते हैं'हे भारमल्ल ! मान-धनका धारक कविराजमल्ल यदि तुम्हारे यशको छंदोद्ध करता है तो यह एक बड़े ही आश्चर्य की बात है । अथवा श्राप तेजोमय शरीरके धारक हैं, आपके पुण्यप्रतापसे पर्वत भी अपना सार बहा देते हैं ।' इस पिछले पसे यह साफ ध्वनित होता है कि कविराजमल्ल उस समय एक अच्छी ख्याति एवं प्रतिष्ठाप्राप्त विद्वान् थे, किसी क्षुद्र स्वार्थ के वश होकर कोई कवि-कार्य करना उनकी प्रकृतिमें दाखिल नहीं था, वे सचमुच राजा भारमल्लके व्यक्तित्व से उनकी सत्प्रवृत्तियों एवं सौजन्यसेप्रभावित हुए हैं, और इसीसे छंदशास्त्रके निर्माणके साथ साथ उनके यशको अनेक छंदोंमें वर्णन करनेमें प्रवृत्त हुए हैं यहाँ एक बात और भी जान लेनेकी है और वह यह कि, तीसरे पद्य में जिन 'हर्षकीर्ति' साधुका उनकी गुरु परम्परा के साथ उल्लेख किया गया है a नागौरी तपागच्छ श्राचार्य थे, ऐसा 'जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' नामक गुजराती ग्रन्थ से जाना जाता है। मालूम होता है भारमल्ल इसी नागौरी तपागच्छक ाग्नायके थे, जो कि नागौरके रहनेवाले थे, इसीसे उनके पूर्व उनकी आम्नायके साधुओं का उल्लेख किया गया है । कवि राजमल्लने अपने दूसरे दो ग्रन्थों (जम्बूस्वामिचरित्र तथा लाटीसंहिता) में काष्ठासंत्री माथुरगच्छके श्राचार्यों का उल्लेख किया है, जिनकी प्राम्नायमें वे श्रवकजन थे जिनकी प्रार्थनापर अथवा जिनके लिये उक्त ग्रंथोंका निर्माण किया गया है । दूसरे दो ग्रंथ ( अध्यात्मकमलमार्तण्ड और पंचाध्यायी ) चूंकि किसी व्यक्तिविशेषको प्रार्थनापर या उसके लिये नहीं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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