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________________ ५८ 1 अध्यात्मकमलमार्तण्ड श्रीमच्छीमालकुले समुदयदुदयाद्रदेवद [त्त ] स्य । रविवि राँक्यांणकृते व्यदीपि भूपालभारमल्लाह्वः ||४|| भूपतिरिति सुविशेषणमिदं प्रसिद्धं हि भारमल्लस्य । सिंघाधिपतिर्वणिजामिति वक्ष्यमाणेपि ||५|| अन्येद्यः कुतुकोल्वणानि पठता छंदांसि भूयांसि भो सूनोः श्रीसुरसंज्ञकस्य पुरतः श्रीमाल चूडामणेः । ईत्तस्य मनीषितं स्मितमुखात्संलक्ष्य पक्ष्मान्मया दिग्मात्रादपि नामपिङ्गलमिदं धार्ष ट्यादुपक्रम्यते ||६|| चित्रं महद्यदिह मान-धनो यशस्ते छंदोमयं नयति यत्कविराजमल्लः । यद्वाद्रयोपि निजसार मिह द्रवन्ति पुण्यादयोमयतनोस्तव भारमल्ल || ७ || इनमें से प्रथम पद्यमें प्रथमजिनेन्द्र ( आदिनाथ ) को नमस्कार किया गया है और उन्हें 'केवल किरणदिनेश' बतलाते हुए लिखा है कि 'उनकी ज्ञानज्योतिमें यह जगत् श्राकाशमें एक नक्षत्रकी तरह भासमान है ।' अपनी लाटीसंहिता के प्रथम पद्यमें तीर्थंकर महावीरको नमस्कार करते हुए 'भी कविवरने यही भाव व्यक्त किया है, जैसा कि उसके " यच्चिति विश्वमशेषं व्यदीपि नक्षत्रमेकमिव नभसि " इस उत्तरार्धसे प्रकट है । साथ ही, उसमें महावीरका विशेषण 'ज्ञानानन्दात्मानं' लिखकर ज्ञानके साथ आनन्दको भी जोड़ा है । लाटीसंहिता के प्रथम पद्यमें छंदोविद्या के प्रथम पद्यका जो यह साहित्यिक संशोधन और परिमार्जन दृष्टिगोचर होता है उससे ऐसी ध्वनि निकलती हुई जान पड़ती है कि, कविकी यह कृति लाटीसंहिता के कुछ पूर्ववर्तिनी होनी चाहिये वशर्ते कि लाटीसंहिता के निर्माण से पूर्व नागपुरीय-तपागच्छके भट्टारक हर्षकीर्ति पट्टारूढ़ हो चुके हों । * लाटीसंहिताका निर्माणकाल श्राश्निशुक्ला दशमी वि० सं० १६४१ है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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