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________________ प्रस्तावना "अशेषतः स्तोतुमलं न मादृशो समानदानादिगुणानसंख्यतः । ततोऽस्य दिग्मात्रतयाशितुं क्षमे पयोधितो वा जलमञ्जलि स्थितम्।।३० चिरं-चिरंजीव चिरायुरायतौ प्रजाशिषः सन्तसमग्रिमाग्रिमम् । यथाभिनन्दुर्वसुधा सुधाधिपं कलाभिरेनं परया मुदा मुदे ॥३१।। - जम्बू० प्रथमसर्ग इस सब कथन परसे स्पष्ट है कि कविकी दृष्टिमें अकबर कितना महान् था और वह अपने गुणोंके कारण कविके हृदयपर कितना अधिकार किये हुए था। अपनी इस महानता और प्रजावत्सलताके कारण ही उसे कविके शब्दोंमें प्रजाके 'चिरं-चिरंजीव' और 'चिरायुरायतौ' जैसे आशीर्वाद निरन्तर बड़ी प्रसन्नताके साथ प्राप्त होते रहते थे। छन्दोविद्या (पिङ्गल )___इस ग्रन्थका भी सर्वप्रथम दर्शन मुझे देहलीके एक शास्त्रभण्डारकी प्रतिपरसे हुआ है। सन् १६४१ के शुरूमें मैंने इसका प्रथम परिचय 'अनेकान्त के पाठकोंको दिया था और उस समय इसकी दूसरी प्रति खोजनेकी खास प्रेरणा भी की थी। परन्तु दूसरे शास्त्रभण्डारोंमें इसकी कोई प्रति उपलब्ध नहीं होरही है-मुनिश्री पुण्यविजयनी पाटन(गुजरात) आदि को लिखकर श्वेताम्बर शास्त्रभण्डारोंमें भी खोज कराई गई किन्तु कहीं भी इस ग्रन्थके अस्तित्वका पता नहीं चला। अतः देहलीको कविराजसल्लके दूसरे दो ग्रन्थों (लाटीसंहिता और जम्बूस्वामिचरित) की तरह इस ग्रन्थकी भी सुरक्षाका श्रेय प्राप्त है। और इसलिये ग्रन्थका परिचय देनेसे पहले मैं इस ग्रन्थप्रतिका परिचय करा देना उचित समझता हूँ। यह ग्रन्थप्रति देहलीके पंचायती मन्दिरमें मौजूद है। इसकी पत्र-संख्या सिली हुई पुस्तकके रूपमें २८ है, पहले पत्रका प्रथम पृष्ठ खाली है, २८ वें पत्रके अन्तिम पृष्टपर तीन पंक्तियाँ हैं-उसके शेष भागपर किसीने बादको छन्दविषयक कुछ नोट कर रक्खा है और मध्यके १८ वें पत्रके प्रथम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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