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प्रस्तावना "राज्ञो यशः शशाङ्केन वर्द्धमानं दिनं दिनम् । वर्णयामि कथं चैनं नगरेशं महार्णवम् ॥४४॥
-प्रथम सर्ग इस परसे यह सहजमें ही समझा जा सकता है कि अकबर राजनीतिका कितना भारी पण्डित था, उसको अमली जामा पहनानेमें कितना दक्ष था और साथ ही प्रजाकी सुख-समृद्धिकी ओर उसका कितना लक्ष्य था। 'जज़िया' करको उठा देना, जिससे हिन्द पिसे जारहे थे, और शराबको बन्द कर देना भी उसकी राजनैतिक दूरदृष्टिता तथा प्रजाहितके कार्य थे। शराबबन्दीके अकबर उद्देश्यको व्यक्त करते हुए कविवरने साफ लिखा है कि-'शराबसे प्रमत्तधी (पागल) हुअा मनुष्य प्रमादमें पड़कर कुधर्मवर्गोंमें प्रवृत्त होता है, इसलिये वह पापकी कारण है-प्रजामें पापों (गुनाहों)की वृद्धि करनेवाली है-इसीसे उसको बन्द किया गया है।'
लाटीसंहितामें वैराटनगरका वर्णन करनेके अनन्तर अकबरकी 'चगत्ता' (चग़ताई) जाति और उसके पितामह 'बाबर' बादशाह तथा पिता 'हुमायूँ' बादशाहका कीर्तन करके अकबरके विषयमें जो दो काव्य दिये हैं वे इस प्रकार हैं :
तत्पुत्रोऽजनि सार्वभौमसदृशः प्रोद्यत्प्रतापानलज्वालाजालमतल्लिकाभिरभितः प्रज्वालितारिव्रजः । श्रीमत्साहिशिरोमणिस्त्वकबरो निःशेषशेषाधिपैः नानारत्नकिरीटकोटिघटितः स्रग्भिः श्रितांहिद्वयः ।।६।। श्रीमडिंडीरपिण्डोपमितमितनभः पाण्डुराखण्डकी-- कृष्टं ब्रह्माण्डकाण्डं निजभुजयशसा मण्डपाडम्बरोऽस्मिन् ।
* देखो, पूर्वमें (पृ०३८ पर) उद्धृत जम्बूस्वामिचरितके प्रथम सर्गका पद्य नं० २६।
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