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________________ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड को कुछ निकटसे देखनेका भी अवसर प्राप्त हुआ है। आप अकबरको बड़ी ऊंची दृष्टिसे देखते थे और उसे अद्भुत उदयको प्राप्त तथा दयालु के रूपमें पाते थे। आपकी नज़रमें अकबर नामका ही अकबर नहीं था, बल्कि गुणोंमें भी अकबर ( महान् ) था, और इसलिये यह उसकी सार्थक संज्ञा थी-'जलालदीन' नाम तथा 'ग़ाज़ी' उपपदसे भी उसका उल्लेख किया गया है। अकबरकी राज्यव्यवस्था कैसी थी और उसकी प्रजा कितनी सुखी थी, इसका कुछ अनुभव वैराटनगरके उस वर्णनसे भले प्रकार हो सकता है जो कविवरने लाटीसंहिताके ४८ काव्योंमें किया है और जिसका कुछ संक्षिप्त सार ऊपर लाटीसंहिताके निर्माण-स्थानके वर्णन (पृष्ठ २६ ) में दिया जाचुका है। जब राज्यका एक नगर इतना सुव्यवस्थित और सुखसमृद्धिसे पूर्ण था तब स्वयं राजधानीका नगर अागरा कितना सुव्यवस्थित और सुखसमृद्धिसे पूर्ण होगा, इसकी कल्पना विज्ञ पाठक स्वयं कर सकते हैं। कविवरने तो, आगरा नगरका संक्षेपतः वर्णन करते हुए और उसे 'नगराऽधिपाऽधिपति' तथा 'समस्तवस्त्वाकर' बतलाते हुए, सांकेतिकरूपमें इतना ही कह दिया है कि-'राजनीतिके महामार्गको छोड़कर जो लोग उन्मार्गगामी या अमार्गगामी थे उनका निग्रह होनेसेराजनीतिके विरुद्ध उनकी प्रवृत्तिके छुटजानेसे-और साधुवर्गोंका वहाँ संग्रह होनेसे वह नगर 'सारसंग्रह' के रूपमें है। अकबर बादशाहके यशरूपी चन्द्रमासे दिन दिन वृद्धिको प्राप्त हुए ‘महासमुद्र'स्वरूप इस नगरोंके सरताज (राजा) आगरेका वर्णन मैं कैसे करू १ : "राजनीतिमहामार्गादुत्पथाऽपथगामिनाम् । निग्रहात्साधुवर्गाणां संग्रहात्सारसंग्रहम् ॥४२॥ * अथास्ति दिल्लीपतिरद्भुतोदयो दयान्वितो बब्बर-नन्द-नन्दनः। अकब्बरः श्रीपदशोभितोऽभितो न केवलं नामतयार्थतोऽपि यः ॥५॥ -जम्बूस्वामिचरित Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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