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प्रस्तावना
४६ प्रकारके घोर उपसर्ग जारी रहे और उन्हें दृढताके साथ साम्यभावसे सहते हुए ही मुनियोंने प्राण त्याग किये हैं। उन्हीं समाधिको प्राप्त धीर वीर मुनियोंकी पवित्र यादगारमें उनके समाधिस्थानके तौरपर ये ५०१ स्तूप एकत्र बनाये जान पड़ते हैं। बाकी १३ स्तूपोंमें एक स्तूप जम्बूस्वामीका होगा और १२ दूसरे मुनिपुंगवोंके । जम्बूस्वामीका निर्वाण यद्यपि इस ग्रन्थ में विपुलाचल पर बताया गया है, फिर भी चूँकि जम्बूस्वामी मथुरामें विहार करते हुए आये थे, कुछ अर्से तक ठहरे थे और विद्युच्चर आदिके जीवनको पलटनेवाले उनके खास गुरु थे, इसलिए साथमें उनकी भी यादगारके तौरपर उनका स्तूप बनाया गया है। हो सकता है कि ये १३ स्तूप उसी स्थान पर हों जिसपर आजकल चौरासीमें जम्बूस्वामीका विशाल मंदिर बना हुआ है और ५०१ स्तूपोंका समूह कंकाली टीलेके स्थानपर ( या उसके संनिकट प्रदेशमें) हो, जहाँसे बहुतसी जैनमूर्तियाँ तथा शिलालेख आदि निकले हैं। पुरातत्वज्ञों द्वारा इस विषयकी अच्छी खोज होनेकी जरूरत है। जैनविद्वानों तथा श्रीमानोंको इसके लिए खास परिश्रम करना चाहिये। कविवरकी दृष्टि में शाह अकबर
कविवर राजमल्लजी शाह अकबरके राज्यकालमें हुए हैं और कुछ वर्ष तक अकबरकी राजधानी आगरामें भी रहे हैं, जिसे अर्गलदुर्गके नामसे भी उल्लेखित किया गया है, और इससे उन्हें दिल्लीपति अकबर* विजहर्थ ततो भूमौ श्रितो गन्धकुटी जिनः । मगधादिमहादेशमथुरादिपुरीस्तथा ॥१२-११६॥ कुर्वन् धर्मोपदेशं स केवलज्ञानलोचनः । वर्षाष्टादशपर्यन्तं स्थितस्तत्र जिनाधिपः ॥-१२०॥ ततो जगाम निर्वाणं केवली विपुलाचलात् । कर्माष्टकविनिर्मुक्तः शाश्वतानन्तसौरव्यभाक् ।।-१२१॥
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