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________________ अध्यात्म-कमल-मातएड के अनुसार सब मुनि उसी स्थान पर ठहर गये * । इतनेमें किसी वनदेवताने अाकर विद्युचरको सूचना दी कि यदि तुम लोग इस स्थानपर रातको ठहरोगे तो तुम्हारे ऊपर ऐसे घोर उपसर्ग होंगे जिन्हें तुम सहन नहीं कर सकोगे, अतः पाँच दिनके लिये किसी दूसरे स्थान पर चले जाओ। इस पर विद्यचरने संघके कुछ वृद्ध मुनियोंसे परामर्श किया, परन्तु मुचिचर्याके अनुसार रातको गमन करना उचित नहीं समझा गया। कुछ मुनियोंने तो दृढताके साथ यहाँ तक कह डाला कि"अस्तं गते दिवानाथे नेयं कालोचिता क्रिया ॥१२-१३३।। विभ्यतां कीदृशो धर्मः स्वामिनिःशंकिताभिधः । उपसर्गसहो योगी प्रसिद्धः परमागने ।-१३४॥ भवत्वत्र यथाभाव्यं भाविकर्म शुभाऽशुभम् । तिष्ठामो वयमद्यैव रजन्यां मौनवृत्तयः।-१३।। 'सूर्यास्तके बाद यह गमन-क्रिया उचित नहीं है। डरने वालोंके निःशंकित नामका धर्म कैसा ? आगममें उपसर्गोंको सहनेवाला ही योगी प्रसिद्ध है । इसलिये भावी शुभ-अशुभ-कर्मानुसार जो कुछ होना है वह हो रहो, हम तो आज रातको यहीं मौन लेकर रहेंगे।' ___ तदनुसार सभी मुनिजन मौन लेकर स्थिर हो गये। इसके बाद जो उपसर्ग-परम्परा प्रारम्भ हुई उसे यहाँ बतलाकर पाठकोंका चित्त दुखानेकी नरूरत नहीं है-उसके स्मरणमात्रसे रोंगटे खड़े होते हैं । रातभर नाना * अथ विद्युच्चरो नाम्ना पर्यटन्निह सन्मुनिः । एकादशांगविद्यायामधीती विदधत्तपः ॥१२-१२५॥ अथान्येद्युः सु निःसंगो मुनिपंचशतैर्वृतः। मथुरायां महोद्यानप्रदेशेष्वगमन्मुदा ।।-१२६॥ तदागच्छत्स वैल(र)क्त्यं भानुरस्ताचलं श्रितः। घोरोपसर्गमेतेषां स्वयं द्रष्टुमिवाक्षमः ॥-१२७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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