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प्रस्तावना
दूसरा, ऐसे ५१४ स्तूप बनाये गये और उनके पास ही १२ द्वारपाल आदिक भी स्थापित किये गये । जब निर्माणका यह सब कार्य पूरा हो गया तब चतुर्विध संघको बुलाकर उत्सवके साथ सं० १६३० के अनन्तर (सं० १६३१ की) ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशीको बुधवारके दिन ६ घड़ीके ऊपर पूजन तथा सूरिमन्त्रपुरस्सर इस तीर्थसम * प्रभावशाली क्षेत्रकी प्रतिष्ठा की गई x। इस विषयको सूचित करने वाले पद्य इस प्रकार हैं
अथैकदा महापुर्यां मथुरायां कृतोद्यमः। यात्रायै सिद्धक्षेत्रस्थचैत्यानामगमत्सुखम् ॥७॥ तस्याः पर्यन्तभूभागे दृष्ट्वा स्थानं मनोहरम् । महर्षिभिः समासीनं पूतं सिद्धास्पदोपमम् ॥२०॥ तत्रापश्यत्सधर्मात्मा निःसहीस्थानमुत्तमम् । अंत्यकेवलिनो जंबूस्वामिनो मध्यमादिमम् ।।८।। ततो विद्युच्चरो नाम्ना मुनिः स्यात्तदनुग्रहात् । अतस्तस्यैव पादान्ते स्थापितः पूर्वसूरिभिः ॥२॥ ततः केऽपि महासत्वा दुःखसंसारभीरवः ।
संनिधानं तयोः प्राप्य पदं साम्यं समं दधुः ।।३।। * 'तीर्थ' न कहकर 'तीर्थसम' कहनेका कारण यही है कि कवि-द्वारा जम्बूस्वामीका निर्वाण-स्थान, मथुराको न मानकर, विपुलाचल माना गया है ('ततो जगाम निर्वाणं केवली विपुलाचलात्')। सकलकीर्तिके शिष्य जिनदास ब्रह्मचारीने भी विपुलाचलको ही निर्वाणस्थान बतलाया है। मथुराको निर्वाणस्थान माननेकी जो प्रसिद्धि है वह किस आधारपर अवलम्बित है, यह अभी तक भी कुछ ठीक मालूम नहीं हो सका। ____x प्रतिष्ठा हो जानेके बाद ही सभामें जम्बूस्वामीका चरित रचनेके लिये कवि राजमल्लसे प्रार्थना की गई है, जिसके दो पद्य पीछे (पृ०४०पर) उद्धृत किये गये हैं।
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