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________________ प्रस्तावना परन्तु लाटीसंहितादि दूसरे ग्रन्थोंमें इस प्रकारकी दुर्जन-भीतिका कोई उल्लेख नहीं है, और इससे मालूम होता है कि कविवरके विचारोंमें इसके बादसे ही परिवर्तन हो गया था और वे और ऊंचे उठ गये थे। इस ग्रन्थका आदिम मंगलाचरण इस प्रकार है :उद्दीपीकृतपरमानन्दाद्यात्मचतुष्टयं च बुधाः। निगदन्ति यस्य गर्भाधुत्सवमिह तं स्तुवे वीरम् ।।१।। बहिरंतरंगमंगं संगच्छद्भिः स्वभावपर्यायैः । परिणममानः शुद्धः सिद्धसमूहोऽपि वो श्रियं दिशतु ।।२।। चरित्रमोहारिविनिर्जयाद्यतिर्विरज्यशय्याशयनाशनादपि । व्रतं तपः शीलगुणाश्च धारयंत्रयीव जीयाद्यदिवा मुनित्रयी।३। रवेः करालीव विधुन्वती तमो यदान्तरं स्यात्पदवादि-भारती। पदार्थसार्थी पदवीं ददर्श या मनोम्बुजे मे पदमातनोतु सा ।।। यहाँ मंगलरूपमें वीर (अर्हन्त), सिद्धसमूह और मुनित्रयी (प्राचार्य, उपाध्याय, साधु) इन पंचपरमेष्ठिका जिस क्रमसे स्मरण किया गया है उसीका अनुसरण लाटीसंहिता और पंचाध्यायीमें भी पाया जाता है। भारती ( सरस्वती ) का जो स्मरण यहाँ 'स्याद्वादिनी' के रूपमें है वही अध्यात्मकमलमार्तण्डमें 'जगदम्बभारती' के रूपमें और लाटीसंहितामें 'जैन कविवरोंकी भारती के रूपमें ('जयन्ति जैनाः कवयश्च तद् गिरः') उपलब्ध होता है। और अन्तको पंचाध्यायीमें उसे ही 'जैनशासन' ('जीयाज्जैन शासनम्') रूपसे उल्लेखित किया है। और इस तरह इन ग्रन्थोंकी मंगलशरणी प्रायः एक पाई जाती है। हाँ, एक बात और भी इस सम्बन्धमें नोट करलेने की है और वह यह कि इस जम्बूस्वामिचरितके द्वितीयादि सर्गों में पहले एक एक पद्य द्वारा उन साहु टोडरको आशीर्वाद दिया गया है जिन्होंने ग्रन्थकी रचना कराई है और जिन्हें ग्रन्थमें अनेक गुणोंका आगार, महोदार, त्यागी (दानी), Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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