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________________ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड बदल गये हैं और ये भट्टारक बहुत ही अल्पायु हुए हैं। संभव है कि उनकी इस अल्पायुका कारण कोई आकस्मिक मृत्यु अथवा नगरमें किसी वत्राका फैल जाना रहा हो । ४० कवि राजमल्लने इस ग्रन्थमें अपना कोई विशेष परिचय नहीं दिया । हाँ, 'कवि' विशेषण के अतिरिक्त "स्याद्वादाऽनवद्य गद्य-पद्य-विद्याविशारद्" यह विशेषण इस ग्रन्थमें भी दिया गया है। साथ ही, ग्रन्थरचनेकी साहु टोडरकी प्रार्थनामें अपने विषय में इतनी सूचना और की है कि आप महाबुद्धिसम्पन्न होते हुए 'परोपकारके लिये कटिबद्ध' थे और कृपासिन्धुके उस पार पहुँचे हुए थे - बड़े ही कृपापरायण थे । यथाः— यूयं परोपकाराय बद्धकता महाधियः । उत्तीर्णाश्च परं तीरं कृपावारिमहोदधेः ॥ १२६॥ ततोऽनुग्रहमाधाय बोधयध्वं तु मे मनः । जम्बूस्वामिपुराणस्य शुश्रूषा हृदि वर्तते ॥ १२७ ॥ बहुत संभव है कि आप कोई अच्छे त्यागी ब्रह्मचारी ही रहे हों -गृहस्थके जाल में फंसे हुए तो मालूम नहीं होते । अस्तु; इस ग्रन्थ परसे इतना तो स्पष्ट है कि कुछ वर्षों तक गरे में भी रहे हैं। और आगरे के बाद ही वैराट नगर पहुँचे हैं, जहाँ के जिनालय में बैठकर आपने 'लाटीसंहिता' की रचना की है। एक बात और भी स्पष्ट जान पड़ती है और वह यह कि इस चरित - अन्थ की रचना करते समय कविवर युवा अवस्थाको प्राप्त थे - प्रौढ़ा अथवा वृद्धावस्थाका नहीं; क्योंकि गुरुजनोंकी उपस्थिति में जम्बूस्वामिचरित - के रचने की जब उनसे मथुरा-सभा में प्रार्थना की गई तो उसके उत्तरमें * यथाः “निग्रहस्थानमेतेषां पुरस्ताद्वक्ष्यते कविः ।” ( २ - ११६) सर्बतोऽस्य सुलक्ष्माणि नाऽलं वर्णयितुं कविः ( २-२१६) - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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