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________________ प्रस्तावना परोपकारी थे और जिन्हें कविवरने परोपकारार्थ शाश्वती लक्ष्मी प्राप्त करनेरूप आशीर्वाद दिया है । इस ग्रन्थकी रचना करानेवाले टोडरसाहु इन दोनोंके खास प्रीतिपात्र थे और उन्हें टकसालके कार्य में दक्ष लिखा है"तत्र ठक्कुरसंज्ञकश्च अरजानीपुत्र इत्याख्यया कृष्णामंगलचौधरीति विदितः क्षात्रः स्ववंशाधिपः। श्रीमत्साहिजलालदीन-निकटः सर्वाधिकारक्षमः सार्वः सर्वमयः प्रतापनिकरः श्रीमान्सदास्ते ध्रुवम् ॥५६॥" येनाकारि महारिमानदमनं वित्तं बृहच्चार्जितम् कालिंदीसरिदम्बुभिः सविधिना स्नात्वाथ विश्रांतिके । तामारुह्य तुलामतुल्यमहिमां सौवर्ण्यशोभामयीमैन्द्रश्रीपदमात्मसात्कृतवता संराजितं भूतले ॥५॥ तस्याग्रे गढ़मल्लसाहुमहती साधूक्तिरन्वर्थतो यस्मात्स्वामिपरं बलेशमपि तं गृह्णाति न काप्ययम् । श्रीमद्वैष्णवधर्मकर्मनिरतो गंगादितीर्थे रतः श्रीमानेष परोपकारकारणे लभ्याच्छ्रियं शाश्वतीम् ॥५८।। तयोर्द्वयोः प्रीतिरसामृतात्मकः स भाति नानाटकसारदक्षकः। कथं कथायां श्रवणोत्सुकः स्यादुपासकः कश्च तदन्वयं वदे ।५।। टोडरसाहु गर्गगोत्री अग्रवाल थे, भटानियाकोल( अलीगढ़ )नगरके रहने वाले थे और काष्टासंघी भट्टारक कुमारसेनके अाम्नायी थे। कुमारसेन को भानुकीर्तिका, भानुकीतिको गुणभद्रका और गुणभद्रको मलयकीर्ति भट्टारकका पट्टशिष्य लिखा है । परन्तु लाटीसंहितामें, जो वि० सं० १६४१ में बनकर समाप्त हुई है, ये ही ग्रन्थकार इन्हीं कुमारसेन भट्टारकके पट्टपर क्रमशः हेमचन्द्र, पद्मनन्दी, यश-कीर्ति और क्षेमकीर्ति भट्टारकोंका होना लिखते हैं और प्रकट करते हैं कि इस समय क्षेमकीति भाट्टारक मौजूद हैं। इससे यह साफ मालूम होता है कि दस वर्षके भीतर चार पट्ट Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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