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अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड
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गोत्रे भटानिया कोलवास्तव्य - श्रावकसाधुश्री X एतेषां - मध्ये परमसुश्रावक - साधुश्रीटोडरेण जंबुस्वामिचरित्रं कारापितं लिखापितं च कर्मक्षयनिमित्तं || || लिखितं गंगादासेन ॥ "
इससे यह ग्रन्थ लाटीसंहिता से ६-१० वर्ष पहलेका बना हुआ है । इसमें कुल १३ सर्ग हैं और मुख्यतया अन्तिम केवली श्रीजम्बूस्वामी तथा उनके प्रसादसे सन्मार्गमें लगनेवाले 'विद्युच्चर' की कथा का वर्णन है, जो बड़ी ही सुन्दर तथा रोचक है । कविने स्वयं इस चरितको एक स्थानपर, 'रोमाञ्चजनने क्षम' इस विशेषणके द्वारा, रोमाञ्चकारी ( रोंगटे खड़े करनेवाला ) लिखा है । इसका पहला सर्ग ' कथामुखवर्णन' नामका १४८ पद्योंमें समाप्त हुआ है और उसमें कथाके रचना सम्बन्धको व्यक्त करते हुए कितनी ही ऐतिहासिक बातोंका भी उल्लेख किया है। अकबर बादशाहका कीर्तन और उसकी गुजरात - विजयका वर्णन करते हुए लिखा है कि उसने 'जज़िया' कर छोड़ दिया था और 'शराब' बन्द की थी । यथाः -
" मुमोच शुल्कं त्वथ जेजियाऽभिघं स यावदंभोधरभूधराधरं । २७॥ " प्रमादमादाय जनः प्रवर्त्तते कुधर्म वर्गेषु यतः प्रमत्तधीः ततोऽपि मद्यं तदवद्यकारणं निवारयामास विदांवरः स हि ||२६||
गरेमें उस समय अकबर बादशाह के एक खास अधिकारी ( सर्वाधिकारक्षमः ) ' कृष्णा मंगल चौधरी' नामके क्षत्रिय थे जो 'ठाकुर' तथा 'रजानीपुत्र' भी कहलाते थे और इन्द्रश्री को प्राप्त थे। उनके आगे 'गढमल्लसाहु' नामके एक वैष्णव धर्मावलम्बी दूसरे अधिकारी थे जो बड़े
X यहाँ बिन्दुस्थानीय भागमें साधु टोडरके पूर्वजों तथा वर्तमान कुटुस्त्रीजनोंके नामादिकका उल्लेख है ।
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