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________________ प्रस्तावना और वे फीके पड़ जाते थे। इन्हीं भ० हेमचन्द्रकी आम्नायमें 'ताल्हू' विद्वान्को भी सूचित किया है। इससे इस विषयमें कोई सन्देह नहीं रहता कि कविराजमल्ल एक काष्ठासंघी विद्वान थे। आपने अपनेको हेमचन्द्रका शिष्य या प्रशिष्य न लिखकर अानायी लिखा है और फामनके दान-मान-पासनादिकसे प्रसन्न होकर लाटीसंहिताके लिखनेको सूचित किया है, इससे यह स्पष्ट ध्वनि निकलती है कि आप मुनि नहीं थे। बहुत संभव है कि आप गृहस्थाचार्य हों या त्यागी ब्रह्मचारीके पदपर प्रतिष्ठित रहे हों। परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि आप एक बहुत बड़े प्रतिभाशाली विद्वान् थे, जैनागमोंका अध्ययन तथा अनुभव अापका बढ़ा चढ़ा था और आप सरलतासे विषयके प्रतिपादनमें कुशल एवं ग्रन्थ-निर्माणकी कलामें दक्ष थे। लाटीसंहिताका नामकरण श्रावकाचार-विषयक ग्रन्थका 'लाटीसंहिता' यह नाम-करण बहुत ही अश्रुतपूर्व तथा अनोखा जान पड़ता है, और इस लिये पाठक इस विषयमें कुछ जानकारी प्राप्त करनेके जरूर इच्छुक होंगे। अतः यहाँपर इसका कुछ स्पष्टीकरण किया जाता है। इस ग्रन्थमें कठिन पदों तथा लम्बे-लम्बे दुरूह समासोंका प्रयोग न करके सरल पदों व मृदु समासों तथा कोमल उक्तियोंके द्वारा श्रावकधर्मका संग्रह किया गया है और उसके प्रतिपादन में उचित विशेषणोंके प्रयोगकी अोर यथेष्ट सावधानी रखी गई है। साथ ही, संयुक्ताक्षरोंकी भरमार. भी नहीं की गई। इसी दृष्टिको लेकर ग्रन्थका नाम 'लाटीसंहिता' रक्खा गया जान पड़ता है; क्योंकि 'लाटी' एक रीति । है-रचनापद्धति है-और वैदर्भी, गौड़ी, पाञ्चाली और लाटी ये चार रीतियाँ हैं, जो क्रमशः विदर्भ, गौड़, पाञ्चाल और लाट (गुजरात) देशमें उत्पन्न हुए कवियोंके द्वारा सम्मत हैं। साहित्यदर्पणके 'लाटी तु रीति वैदर्भी-पाञ्चाल्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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