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________________ ३५ श्रध्यात्म-कमल-मार्तण्ड इस तरह पर कविराजमल्लने वैराट नगर, अकबर बादशाह काष्ठासंघी भट्टारक-वंश, फामन - कुटुम्ब, स्वयं फामन और वैराट - जिनालयका कितना ही गुणगान तथा बखान करते हुए लाटीसंहिताके रचना - सम्बन्धको व्यक्त किया है । परन्तु खेद है कि इतना लम्बा लिखनेपर भी आपने अपने विषयका कोई खास परिचय नहीं दिया - यह नहीं बतलाया कि आप कहाँ के रहनेवाले थे, किस हेतुसे वैराट नगर गये थे; कौनसे वंश, जाति, गोत्र अथवा कुलमें उत्पन्न हुए थे; आपके माता-पिता तथा विद्यादि - गुरुका क्या नाम था और आप उस समय किस पदमें स्थित थे । लाटीसंहितासेअध्यात्मकमलमार्तण्ड आदि से भी इन सब बातोंका कोई पता नहीं चलता । हाँ, लाटीसंहिताको प्रशस्ति में एक पद्य निम्न प्रकारसे जरूर पाया जाता है - एतेषामस्ति मध्ये गृहवृषरुचिमान् फामनः संघनाथस्तेनोच्चैः कारितेयं सदनसमुचिता संहिता नाम लाटी । श्रेयोर्थं फामनीयैः प्रमुदितमनसा दानमानासनाद्यैः । स्वोपज्ञा राजमल्लेन विदितविदुषाऽऽम्नायिना हैम चन्द्रे ।।४७ (३८) इस पद्यसे ग्रन्थकर्त्ता के सम्बन्ध में सिर्फ इतना ही मालूम होता है कि वे हेमचन्दकी आम्नायके एक प्रसिद्ध विद्वान् थे और उन्होंने फामनके दान- मान-सनादिकसे प्रसन्नचित्त होकर लाटीसंहिताकी रचना की है । यहाँ जिन हेमचन्द्रका उल्लेख है वे वे ही काष्ठासंघी भट्टारक हेमचन्द्र जान पड़ते हैं जो माथुर -गच्छी पुष्कर-गणान्वयी भट्टारक कुमारसेनके पट्टशिष्य तथा पद्मनन्दि - भट्टारक के पट्ट-गुरु थे और जिनकी कविने संहिताके प्रथम सर्ग ( पद्य नं० ६६ ) में बहुत प्रशंसा की है- लिखा है कि, वे भट्टारकोंके राजा थे, काष्ठा संघरूपी आकाशमें मिथ्यान्धकारको दूर करनेवाले सूर्य थे और उनके नामको स्मृतिमात्रसे दूसरे श्राचार्य निस्तेज हो जाते थे अथवा सूर्यके सन्मुख खद्योत और तारागण जैसी उनकी दशा होती थी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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