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________________ प्रस्तावना चित्रालीर्यदलीलिखत् त्रिजगतामासृष्टिसर्गक्रमाद् आदेशादुपदेशतश्च नियतं श्रीक्षेमकीर्तेः गुरोः । गुर्वाज्ञानतिवृत्तितश्च विदुषस्ताल्हूपदेशादपि वैराटस्य जिनालये लिपिकरस्तत्सार्थनामाऽप्यभूत ॥४॥ वैराट नगरमें उस समय भट्टारक हेमचन्द्रकी प्रसिद्ध अाभ्नायको पालनेवाले 'ताल्हू' नामके एक विद्वान भी थे, जिनके अनुग्रहसे फामनको धर्मका स्वरूप जानने आदिमें कितनी ही सहायता मिली थी। परन्तु उसका वह सब जानना उस वक्त तक प्रायः सामान्य ही था जब तक कि कविराजमल्ल वहाँ पहुँचे और उनसे धर्मका विशेष स्वरूपादि पूछा जाकर लाटीसंहिताकी रचना कराई गई। * कविराजमल्ल वैराट नगरके निवासी नहीं थे; बल्कि स्वयं ही किसी अज्ञात कारणवश वहाँ पहुँच गये थे, यह बात नीचे लिखे पद्यसे प्रकट है, जो संहितामें फामनका वर्णन करते हुए दिया गया है: येनानन्तरिताभिधानविधिना संघाधिनाथेन यद्धम्मोरामयशोमयं निजवपुः कत्तुं चिरादीप्सितम्॥ तन्मन्ये फलवत्तरं कृतमिदं लब्ध्वाऽधुना सत्कविम् । वराटे स्वयमागतं शुभवशादुर्वीशमल्लाह्वयम् ॥७६॥ बहुत संभव है कि आगराके बाद (जहाँ सं० १६३३ में जम्बूस्वामिचरित की रचना हुई) नागौर होते हुए और नागौरमें (जहाँ छन्दोविद्या रची गई) कुछ अर्से तक ठहरकर कविवर वैराट नगर पहुँचे हों और अपने अन्तिम समय तक वहीं स्थित रहे हों; क्योंकि यह नगर अापको बहुत पसन्द आया मालूम होता है । आपने इसकी प्रशंसा तथा महिमाके गानमें स्वतः प्रसन्न होकर ४८ (११ से ५८) काव्य लिखे हैं और अपने इस कीर्तनको नगरका अल्प स्तवन बतलाया है; जैसा कि उसके अन्तके निम्न काव्यसे प्रकट है: इत्याद्यनेकैमहिमोपमानैराटनाम्ना नगरं विलोक्य । स्तोतं मनागात्मतया प्रवृत्तः सानन्दमास्ते कविराजमल्लः ॥१८॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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