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________________ प्रस्तावना फामनके वंशका भी यत्किञ्चित विस्तारके साथ वर्णन है और उससे फामनके पिता, पितामह पितृव्यों, भाइयों और सबके पुत्र-पौत्रों तथा स्त्रियोंका हाल जाना जाता है । साथ ही, यह मालूम होता है कि वे लोग बहुत कुछ वैभवशाली तथा प्रभाव-सम्पन्न थे। इनकी पूर्वनिवास-भूमि 'डौकनी' नामकी नगरी थी और ये काष्ठासंघी माथुरगच्छ पुष्करगणके भट्टारकोंकी उस गद्दीको मानते थे—उसके अनुयायी अथवा अाम्नायी थेजिसपर क्रमशः कुमारसेन, हेमचन्द्र, पद्मनंदी, यश कीर्ति और क्षेमकीर्ति नामके भट्रारक प्रतिष्टित हुए थे।। क्षेमकीर्ति भट्रारक उस प्रतीत नहीं होता और इसके कई कारण हैं-एक तो यह कि लाटीसंहिता उक्त शिलालेखसे साढ़े तीन वर्ष के करीब पहलेकी लिखी हुई है और उसमें वैराट-जिनालयको, जो कितने ही बर्ष पहले बन चुका था, एक दिगम्बर जैन-द्वारा निर्मापित लिखा है। दूसरा यह कि, शिलालेखमें जिस मन्दिरका उल्लेख है उसमें मूलनायक प्रतिमा विमलनाथकी बतलाई गई है, ऐसी हालतमें मन्दिर विमलनाथके नामसे प्रसिद्ध होना चाहिये था, पार्श्वनाथके नामसे नहीं। और तीसरा यह कि, शिलालेख एक कम्पाउण्ड की दीवार में पाया जाता है, जिससे यह बहुत कुछ संभव है कि यह दूसरे मन्दिर का शिलालेख हो, उसके गिर जाने पर कम्पाउण्डकी नई रचना अथवा मरम्मत के समय वह उसमें चिन दिया गया हो। इसके सिवाय, दोनों मन्दिरोंका पासपास तथा एक ही अहातेमें होना भी कुछ असंभवित नहीं है। पहले कितने ही मन्दिर दोनों सम्प्रदायोंके संयुक्त तक रहे हैं; उस वक्त आजकल जैसी बेहूदा कशाकशी नहीं थी। जैसा कि प्रथमसर्गके निम्न पर्योसे प्रकट है:श्रीमति काष्ठासंघे माथुरगच्छेऽथ पुष्करे च गणे। लोहाचार्यप्रभृतौ समन्वये वर्तमाने च ॥६४|| Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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