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________________ अध्यात्म कमल-मार्तण्ड से सुशोभित है और उसमें निर्ग्रन्थ जैनसाधु भी रहते हैं। इसी मन्दिरमें बैठकर कविने लाटीसंहिताकी रचना की है । बहुत सम्भव है कि पंचाध्यायी भी यहीं लिखी गई हो; क्योंकि यह स्थान कविको बहुत पसन्द आया है, जैसाकि आगेके एक फुटनोटसे मालूम होगा और यहाँसे अन्यत्र कविका जाना पाया नहीं जाता । अस्तु, यह ऊंचा अद्भुत जिनमन्दिर साधु दूदाके ज्येष्ठपुत्र और फामनके बड़े भाई 'न्योता' ने निर्माण कराया था और इसके द्वारा एक प्रकारसे अपना कीर्तिस्तम्भ ही स्थापित किया था; जैसा कि संहिताके निम्न पद्यसे प्रकट है: तत्राद्यस्य वरो सुतो वरगुणो न्योताहसंघाधिपो येनैतजिनमन्दिरं स्फुट मिह प्रोत्तुंगमत्यद्भुतं । वैराटे नगरे निधाय विधिवत्पूजाश्च बह्वयः कृताः अत्रामुत्र सुखप्रदः स्वयशसः स्तंभः समारोपितः ॥७२॥ अाजकल वैराट ग्राममें पुरातन वस्तुशोधकोंके देखने योग्य जो तीन चीजें पाई जाती हैं उनमें पार्श्वनाथका मन्दिर भी एक खास चीज है और वह सम्भवतः यही मन्दिर मालूम होता है जिसका कविने लाटीसंहिता में उल्लेख किया है । इस संहितामें संहिताको निर्माण करानेवाले साहु * पार्श्वनाथका यह मन्दिर दिगम्बर जैन है; और दिगम्बर जैनोंके ही अधिकार में है। इस मन्दिरके पासके कम्पाउण्ड (अहाते) की दीवारमें एक लेबवाली शिला चिनी हुई है और उसपर शक संवत् १५०६ (वि. सन् १६४४) 'इन्द्रविहार' अपर नाम 'महोदयप्रासाद' नामके एक श्वेताम्बर मन्दिर के निर्मापित तथा प्रतिष्ठित होनेका उल्लेख है । इस परसे डा० आर० भाण्डारकरने 'आर्कियोलॉजिकल सर्वे वेस्टर्न सर्किल प्रोग्रेस रिपोर्ट संन् १९१०' में यह अनुमान किया है कि उक्त मन्दिर पहले श्वेताम्बरोंकी मिल्कियत था (देखो 'प्राचीन लेखसंग्रह' द्वितीय भाग)। परन्तु भाण्डारकर महोदयका यह अनुमान, लाटीसंहिताके उक्त कथनको देखते हुए समुचित Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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