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________________ प्रस्तावना २६ लोग अब भी उसी वक्त के बतलाते हैं । लाटीसंहितामें कविने, इस नगरकी मुक्तकण्ठसे प्रशंसा करते हुए, अपने समयका कितना ही वर्णन दिया है और उससे मालूम होता है कि यह नगर उस समय बड़ा ही समृद्धिशाली एवं शोभासम्पन्न था। यहाँ कोई दरिद्री नजर नहीं आता था, प्रजामें परस्पर असूया अथवा ईर्षाद्वेषादिके वशवर्ती होकर छिद्रान्वेषणका भाव नहीं था, वह परचक्रके भयसे रहित थी, सब लोग खुशहाल नीरोग तथा धर्मात्मा थे, एक दूसरेका कोई कण्टक नहीं था, चोरी वगैरहके अपराध नहीं होते थे और इससे नगरके लोग दंडका नाम भी नहीं जानते थे। अकबर बादशाहका उस समय राज्य था और वही इस नगरका स्वामी, भोक्ता तथा प्रभु था। नगर कोट-खाईसे युक्त था और उसकी पर्वतमालामें कितनी ही ताँ बेकी खानें थीं जिनसे उस वक्त ताँबा निकाला जाता था और उसे गलागलूकर निकालनेका एक बड़ा भारी कारखाना भी कोटके बाहर, पासमें ही, दक्षिण दिशाकी अोर स्थित था। नगरमें ऊंचे स्थानपर एक सुन्दर प्रोत्तुंग जिनालय-दिगम्बर जैन मन्दिर-था, जिसमें यज्ञस्थंभ और समृद्ध कोष्ठों (कोठों) को लिए हुए चार शालाए थीं, उनके मध्यमें वेदी और वेदीके ऊपर उत्तम शिखर था। कविने इस जिनालयको वैराट नगरके सिरका मुकुट बतलाया है। साथ ही यह सूचित किया है कि वह नाना प्रकारकी रंगविरंगी चित्रावली___* लाटीसंहितामें भी पाण्डवोंके इन परंपरागत चिन्हों के अस्तित्वको सूचित किया है । यथा-- क्रीडादिशृंगेषु च पाण्डवानामद्यापि चाश्चर्यपरंपराङ्काः । या काश्चिदालोक्य बलावलिप्ता दर्प विमुञ्चन्ति महाबलाऽपि।४७॥ * वैराट और उसके अासपासका प्रदेश आज भी धातुके मैलसे आच्छादित है, ऐसा डा० भाण्डारकरने अपनी एक रिपोर्ट में प्रकट किया है, जिसका नाम अगले फुटनोटमें दिया गया है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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