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________________ २४ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड पंचाध्यायी किसी व्यक्ति-विशेषके प्रश्न अथवा प्रार्थनापर नहीं लिखी गई है। प्रत्युत इसके, लाटीसंहितामें उक्त शब्दोंका सम्बन्ध सुस्पष्ट है । लाटीसंहिता अग्रवाल-वंशावतंस मंगलगोत्री साहु दूदाके पुत्र संघाधिपति 'फामन' नामके एक धनिक विद्वानके लिए, उसके प्रश्न तथा प्रार्थनापर, लिखी गई है, जिसका स्पष्ट उल्लेख संहिताके 'कथामुखवर्णन' नामके प्रथम सर्गमें पाया जाता है । फासनको संहितामें जगह जगह आशीर्वाद भी दिया गया है । और उसे महामति, उपज्ञाप्रणी, साम्यधर्मनिरत, धर्मकथारसिक तथा संघाधिनाथ जैसे विशेषणों के साथ उल्लेखित किया है । साथ ही, यह भी लिखा है कि वैराटके बड़े बड़े मुखियाओं अथवा सरदारोंमें भी उसका वचन महत्सूत्र (आगमवाक्य)के समान माना जाता है। उक्त पद्यसे पहले भी, चतुर्थसर्गका प्रारम्भ करते हुए, आशीर्वादका एक पद्य पाया जाता है और वह इस प्रकार है: इदमिदं तव भो वणिजांपते ! भवतु भावितभावसुदर्शनं। विदितफामननाममहामते ! रसिक ! धर्मकथासु यथार्थतः॥१॥ इससे साफ जाना जाता है कि इस पद्यमें जिस व्यक्ति-विशेषको सम्बोधन करके आर्शीवाद दिया गया है वही अगले पद्यका प्रश्नकर्ता और उसमें प्रयुक्त हुए 'नः' पदका वाच्य है । लाटीसंहितामें प्रश्नकर्ता फामनके लिये 'न:' पदका प्रयोग किया गया है, यह बात नीचे लिखे पद्यसे और भी स्पष्ट हो जाती है। सामान्यादवगम्य धर्मफलितं ज्ञातुं विशेषादपि। भक्त्या यस्तमपीपृछद् वृषरुचिर्नाम्नाऽधुना फामनः॥ धर्मत्वं किमथास्य हेतुरथ किं साक्षात् फलं तत्त्वतः। स्वामित्वं किमथेति सूरिरवदत्सर्वं प्रणुनः कविः ।।७७॥७८॥ ऐसी हालतमें नहीं कहा जा जकता कि उक्त पद्य नं० ४७७ पंचाध्यायीसे उठाकर लाटीसंहितामें रक्खा गया है। बल्कि लाटीसंहितासे उठा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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