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________________ २२ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड ढंगकी एक ही है। लाटीसंहिता की सन्धियों में ! राजमल्लको 'स्याद्वादान - वद्य - गद्य-पद्य - विद्याविशारद - विद्वन्मणि' लिखा है और ये दोनों कृतियाँ उनके इस विशेषणके बहुत कुछ अनुकूल जान पड़ती हैं । — लाटीसंहिताको देखकर यह नहीं कहा जासकता कि पंचाध्यायी उसके कर्त्तासे भिन्न किसी और ऊंचे दर्जेके विद्वान्‌की रचना है । अस्तु । मैं समझता हूँ, ऊपरके इन सब उल्लेखों, प्रमाणों अथवा कथनसमुच्चयपरसे इस विषय में कोई सन्देह नहीं रहता कि पंचाध्यायी और लाटीसंहिता दोनों एक ही विद्वान की दो विशिष्ट रचनाएँ हैं, जिनमें से एक पूरी और दूसरी अधूरी है। पूरी रचना लाटीसंहिता है और उसमें उसके कर्त्ताका नाम बहुत स्पष्टरूपसे 'कविराजमल्ल' दिया है । इसलिए पंचाध्यायी को भी 'कविराजमल्ल' की कृति समझना चाहिए, और यह बात बिलकुल ही सुनिश्चित जान पड़ती है - इसमें सन्देहके लिये स्थान नहीं । ग्रन्थ-रचनाका समय-सम्बन्धादिक लाटी संहिताको कविराजमल्लने वि० सं० १६४१ में आश्विनशुक्ला दशमी रविवार के दिन बनाकर समाप्त किया है। जैसा कि उसकी प्रशस्तिके निम्न पद्योंसे प्रकट है : श्रीनृपति (नृप) विक्रमादित्यराज्ये परिणते सति । सहैकचत्वारिंशद्भिरब्दानां शतषोडश ॥ २ ॥ + एक सन्धि नमूने के तौर पर इस प्रकार है : "इति श्रीस्याद्वादानवद्यगद्यपद्यविद्याविशारद - विद्वन्मणि-राजमल्लविरचितायां श्रावकाचाराऽपरनाम - लाटीसंहितायां साधुदूदात्मज - फामन - मनः सरोजारविंद- विकाशनैकमार्तण्डमण्डलायमानायां कथामुखवर्णनं नाम प्रथमः सर्गः ।” Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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