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अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड
स्थितिबन्ध कहते हैं, इसके भी अनेक भेद हैं। फलदानशक्तिके पड़नेको अनुभागबन्ध कहते हैं। तथा कर्मप्रदेशोंकी संख्याका नाम प्रदेशबन्ध है। यह प्रदेशबन्ध आत्माके सर्व प्रदेशोंमें एकक्षेत्रावगाहरूपसे स्थित है और अनन्तान्त प्रमाण है । इन चार प्रकारके बन्धोंमें प्रकृतिबन्ध और प्रदेशबन्ध तो योगोंसे और स्थितिबन्ध तथा अनुभागबन्ध कषायोंसे होते हैं।
योग और कषायके एक साथ होनेका नियमयुगपद्योगकषायौ पटचिक्कणकम्पवञ्चितः स्याताम् । बन्धोऽपि चतुर्धा स्याद्वेतुप्रतिनियतशक्तिो भेदः ॥८॥
अर्थ-योग और कषाय आत्मामें उसी प्रकार एक साथ होते हैं जिस तरह चिकण और सकंप कपड़ेमें चिक्कणता और सकंपता एक साथ होती है ? यह चार प्रकारका बन्ध भी अपने कारणोंकी प्रतिनियत-मिन्न भिन्न शक्तिकी अपेक्षा भेदवान हैअवान्तर अनेक भेदों और प्रभेदोंवाला है। __ भावार्थ-योग और कषाय ये दोनों आत्मामें एक साथ रहते हैं। ज्योंही मन, वचन और कायके निमित्तसे आत्माके प्रदेशों में क्रिया हुई त्यों ही कर्मस्कन्ध खिंचे और खिंचकर आत्माके पास आते ही कषाय उन्हें आत्माके प्रत्येक प्रदेशके साथ चिपका देती है। जिस प्रकार कि चिक्कण और सकंप कपड़ेपर धूलि पाकर चिपक जाती है। उक्त चार प्रकारका बन्ध इन दोनोंसे हुआ करता है । प्रकृतिबन्ध और प्रदेशबन्धमें योगकी प्रधानता रहती है और स्थितिबन्ध तथा अनुभागबन्ध में कषाय की। यह चार प्रकारका बन्ध और कितने ही भेदोंवाला है। इन
+ 'चिक्कणपटकम्पवंच्चितः' मुद्रितप्रतौ पाठः ।
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