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अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड
उक्त विषयका स्पष्टीकरणमिथ्यात्वाद्यात्मभावाः प्रथमसमय एवास्रवे हेतवः स्युः पश्चात्तत्कर्मबन्धं प्रतिसमसमये तौ भवेतां कथंचित् । नव्यानां कर्मणामागमनमिति तदात्वे हि नाम्नास्रवः स्यादायत्यां स्यात्स बन्धः स्थितिमिति लयपर्यन्तमेषोऽनयोर्भित ॥ ४ अर्थ- मिथ्यात्व आदि वैभाविकभाव प्रथम समय में ही में कारण होते हैं, पीछे दूसरे समय में कर्मबन्ध होता है। आगे तो प्रत्येक समय में कथंचित् वे दोनों ही होते हैं। जिस समय नवीन कर्मोंका आगमन होता है उस समय तो वह आस्रव है और आगेकी नाशपर्यन्त स्थिति - सत्ताका नाम बन्ध है । यही इन दोनों में भेद है।
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भावार्थ - उक्त वैभाविकभाव भावास्रव और भावबंध किस प्रकार हैं, इस बातका इस पद्यके द्वारा खुलासा किया गया है. और कहा गया है कि मिध्यात्व आदि पहिले समय में तो आस्रव के कारण हैं और दूसरे समय में 'कर्मबंध कराते हैं । इसके आगे तो प्रति समय वे दोनों ही होते हैं। तत्कालीन नवीन कर्मोका आगमन आस्रव है और उनका नाश पर्यन्त बने रहना बन्ध है. इस तरह उपर्युक्त वैभाविकभावों में भावास्रव और भावबंध दोनों बन जाते हैं ।
पुनः उदाहरणपूर्वक स्पष्टीकरण-वस्त्रादौ स्नेहभावो न परमिह रजोभ्यागमस्यैव हेतुयवत्स्यालिबन्धः स्थितिरपि खलु तावच्च हेतुः स एव । सर्वऽप्येवं कषाया न परमिह निदानानि कर्मागमस्य बन्धस्यापीह कर्मस्थितिमतिरिति यावन्निदानानि भावात् ||५||
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