________________
६२
वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला एकस्यापीह वन्हेर्दहनपचनभावात्मशक्तिद्वयाद्वे वह्निः स्याद्दाहकश्च स्वगुणगणबलात्पाचकश्चेति सिद्धः॥३॥ ___ शंका-वे मिथ्यात्व आदि चार प्रत्यय-वैभाविकभाव भावस्रव और भावबंध इन दोनोंरूप किस प्रकार सम्भव हैं ? क्योंकि वे भाव वास्तवमें एक ही हैं--एक ही प्रकारके हैंभावास्रव या भावन्ध दोनोंमेंसे कोई एक ही प्रकारके हो सकते
हैं ?
___ समाधान-ऐसी शंका करना ठीक नहीं है; दो शक्तियोंकी अपेक्षा भावास्रव और भावबन्ध ऐसे दो भेद हैं। एक ही अग्नि दहन और पचनरूप अपनी दो शक्तियोंकी अपेक्षासे जिस प्रकार दाहक भी है और पाचक भी। उसी प्रकार मिथ्यात्व आदि चारों भाव अपनी भिन्न दो शक्तियोंकी अपेक्षा भावास्रवरूप भी हैं और भावबंधरूप भी हैं।
भावार्थ-यहाँ यह शंका की गई है कि पूर्वोक्त मिथ्यात्व आदि चारों भाव भावात्रव और भावबन्ध दोनों प्रकारके संभव नहीं हैं, उन्हें या तो भावास्रव ही कहना चाहिये या भावबन्ध ही। दोनोंरूप मानना संगत एवं अविरुद्ध प्रतीत नहीं होता। इस शंकाका उत्तर यह दिया गया है कि जिस प्रकार एक ही अग्नि अपनी दहन और पचनरूप दो शक्तियोंसे दाहक भी है और पाचक भी है उसी प्रकार उक्त वैभाविकभावोंमें विभिन्न दो शक्तियोंके रहनेसे वे भावास्रव भी हैं और भावबन्ध भी हैं, ऐसा मानने में कुछ भी असंगति या विरोध नहीं
+ 'शक्ति याद्वै' मुद्रितप्रतौ पाठः।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org