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वीर सेवा मन्दिर - ग्रन्थमाला
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अर्थ — कपडे आदिमें, जो स्नेहभाव - तेल आदिका सम्बन्ध होता है वह ही धूलिके आगमन - आने का कारण होता हैकपड़े पर धूलिके चिपकने में हेतु होता है, दूसरी कोई वस्तु नहीं । और जबतक धूली चिपकी हुई रहती है तबतक स्थिति भी उसकी बनी रहती है और तभी तक वह कारण भी मौजूद रहता है । इसी तरह सभी कषायें कर्मास्रवकी कारण हैं और दूसरा कोई नहीं और जब तक यह कर्मबंध है तभी तक कर्म - स्थिति - कर्म की मौजूदगी और कर्मस्थितिकी निदानभूत कषायें श्रात्मामें बनी रहती हैं।
भावार्थ-यों तो कर्मबंधका कारण योग भी है, परन्तु अत्यन्त दुःखदायक स्थिति और अनुभागरूप कर्मबंधका कारण कषाय ही है* । जब तक यह कपाय आत्मामें मौजूद रहती है तबतक कर्मस्थिति भी बनी रहती है और नये नये कर्मबंध होते रहते हैं । कपड़े पर जबतक जितनी और जैसी चिक्करणता होगीतैल आदि चिकने पदार्थका सम्बन्ध होगा तबतक उतनी ही धूलि उस कपड़ेपर चिपकती रहेगी । अतः कर्मबंधका मुख्य कारण कपाय ही है और इसीलिये 'कषायमुक्तिः किल मुक्तिरेव' कषायकी मुक्तिको मुक्ति कहा गया है । अतएव मुमुक्षुजन सर्वप्रथम रागद्वेषरूप कषायको ही मन्द करने और छोड़नेका प्रयत्न करते हैं ।
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कर्मबंधव्यवस्था तथा द्रव्यास्त्रव और द्रव्यबंधका लक्षण-सिद्धाः कार्मणवर्गणाः स्वयमिमा रागादिभावैः किल ताज्ञानावरणादिकर्मपरिणामं यान्ति जीवस्य हि ।
* 'मकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान्पुद्गलानादत्ते स बन्धः । ' -तत्त्वार्थसू० ८-२
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