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अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड
शेष पद्म किसी दूसरे ग्रन्थकारकी कृतिपरसे नकल नहीं किये गये हैं । ऐसी हालत में पद्योंकी यह समानता भी दोनों ग्रन्थोंके एक कर्तृत्वको घोषित करती हैं। साथ ही, लाटीसंहिताके निर्माणकी प्रथमताको भी कुछ बतलाती है ।
इन समान पद्योंमेंसे कोई-कोई पद्य कहीं कुछ पाठ-भेदको भी लिये हुए हैं और उससे अधिकांशमें लेखकोंकी लीलाका अनुभव होनेके साथसाथ पंचाध्यायी के कितने ही पद्योंका संशोधन भी होजाता है, जिनकी अशुद्धियोंको तीन प्रतियों परसे सुधारनेका यत्न करने पर भी पं० मक्खनलालजी शास्त्री सुधार नहीं सके और इसलिए उन्हें गलतरूपमें ही उनकी टीका प्रस्तुत करनी पड़ी। इन पद्योंमें से कुछ पद्य नमूने के तौर पर, लाटीसंहिता में दिये हुए पाठभेदको कोष्ठक में दिखलाते हुए, नीचे दिये जाते हैं :
द्रव्यतः क्षेत्रतश्चापि कालादपि च भावतः । नात्राणमंशतोऽप्यत्र कुतस्तद्धिय (द्वीर्म) हात्मनः ।। ५३५|| मार्गो (i) मोक्षस्य चारित्रं तत्सद्भक्ति (सद्द्दग्ज्ञप्ति) पुरःसरम् । साधयत्यात्मसिद्धयर्थं साधुरन्वर्थसंज्ञकः ||६६७॥
मद्यमांसमधुत्यागी त्यक्तोदुम्बर-पंचकः । नामतः श्रावकः क्षान्तो (ख्यातो) नान्यथापि तथा गृही ॥ ७२६ ||
शेषेभ्यः क्षुत्पिपासादि- पीडितेभ्योऽशुभोदयात् । दीनेभ्यो दया (Sभय) दानादि दातव्यं करुणार्णवैः । । ७३१ ।। नित्ये नैमित्तिके चैवं (त्य) जिनबिम्बमहोत्सवे । शैथिल्यं नैव कर्त्तव्यं तत्वज्ञैस्तद्विशेषतः ॥७३॥ अथातद्धर्मणः पक्षे (अर्थान्नाधर्मिण: पक्षी) नावद्यस्य मनागपि । धर्मपक्षक्षतिर्यस्मादधर्मोत्कर्षपोष (रोप) णात् ||१४||
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